नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ प्रेरक कहानियाँडॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा
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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह
साधु-वेश में धोखा
किसी देश के राजा को कोढ़ आ घेरा था। राजवैद्य ने उसकी चिकित्सा के विषय में बताते हुए कहा कि यदि मानसरोवर से हंस पकड़कर मँगवाये जाएँ और उनके कलेजे की दवा बनाई जाय तो महाराज की व्याधि ठीक हो सकती है।
राजा तो राजा थे। अपने राज्य के प्रसिद्ध शिकारियों को आदेश दिया कि वे मानसरोवर जाएँ और वहाँ से हंसों को जीवित ही पकड़ कर लाएँ। मृत हंसों के तो बासी हो जाने से औषधि प्रभावी नहीं हो सकती थी। आदेश का पालन हुआ। व्याध मानसरोवर पहुँच गये। किन्तु हंस थे कि व्याधों को देखते ही वहाँ से लुप्त हो गये।
व्याधों ने देखा कि मानसरोवर में अनेक साधु-संन्यासी विचरण करते थे और पर्यटक भी यात्रा करते रहते थे। उनको देखकर हंस विलुप्त नहीं होते थे, किन्तु व्याधों को देखकर ऐसा क्यों होने लगा? यही उनको आश्चर्य था। बहुत सोच-विचार कर वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सब शिकारियों को साधु-वेश धारण कर लेना चाहिए। फिर हंस वहाँ से विलुप्त नहीं होंगे।
व्याधों ने यही किया। भगवा वस्त्र धारण किये, जटा-जूट रख लिए और कमण्डल हाथ में लेकर इधर-उधर घूमने लगे। उनका उपाय प्रभावी सिद्ध हुआ।
वे नकली साधु हैं, यह तो हंसों को किसी प्रकार पता लग नहीं सकता था। उन साधु-वेशधारी शिकारियों के मानसरोवर पर पहुंचने पर भी हंस वहाँ से विलुप्त नहीं हुए। व्याधों को अपना काम करना था।
उन साधु रूपी शिकारियों ने अपने जाल में हंसों को फँसाया और उनको पकड़ कर राजधानी को ले चले। उन्हें राजा से बुहत सारा पुरस्कार मिलने की आशा थी।
व्याधों को उस वेश में देख कर नगरवासियों को बड़ा आश्चर्य होने लगा। राजा के सम्मुख भी वे उसी वेश में उपस्थित हुए। राजा ने आश्चर्य से उनकी ओर देखा और उनके साधुवेश धारण करने के विषय में जानकारी चाही। शिकारियों ने वास्तविकता का बखान कर दिया और राजा को निहारने लगे।
राजा विचारमग्न हो गया। वह सोचने लगा कि हंसों ने साधुओं पर विश्वास किया और वे उनके जाल में फँस गये। वह विचार करने लगा कि यदि इनको मार कर औषधि बनवाई जाती है तो क्या वह लाभकारी होगी? राजा को सन्देह था। राजा ग्लानि का अनुभव कर रहा था। परिणामस्वरूप उसने जालबद्ध हंसों को जाल-मुक्त करा कर आकाश में छोड़ दिया। हंस उड़कर चले गये।
राजा की चिकित्सा तो चल ही रही थी। संयोगवश इस घटना के उपरान्त जो औषधि राजा को दी गयी, उससे लाभ होना आरम्भ हो गया और ईश्वर की कृपा एवं वैद्यराज की चिकित्सा से कुछ समय पश्चात् राजा निरोग हो गया।
राजा को ही नहीं अपितु व्याधों को भी इससे शिक्षा मिली। वे सोचने लगे कि यदि कपटी साधु के वेश पर वन के पशु-पक्षी तक विश्वास कर लेते हैं, तब असली साधु बन जाने पर तो सभी विश्वास कर लेंगे। तब से उन सभी व्याधों ने पशु-पक्षी वध का दुष्कार्य छोड़ दिया।
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