सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

">
लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ

प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

Like this Hindi book 0

सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

महान् कौन?

नारद नाम का स्मरण आते ही एक विचित्र-सी पुलक मन में उठने लगती है। नारद मुनि महाराज स्वयं थे भी विचित्र। भाँति-भाँति की बातें उनके मन में उठा करती थीं।

इसी प्रकार एक बार उनके मन में आया कि यह जानना चाहिए कि 'संसार में सबसे महान् कौन है?'

नारद जी यह सोचने लगे कि इस विषय में किससे जानकारी प्राप्त हो सकती है।

बहुत विचार करने के उपरान्त भी जब वे कुछ सोच नहीं पाये तो उन्होंने विचार किया कि भगवान ही इस विषय में उनकी सहायता कर सकते हैं। सो पहुँच गये सीधे वैकुण्ठ धाम में। प्रभु को प्रणाम किया और प्रभु उनके आने का कारण पूछें पहले ही स्वयंअपनी जिज्ञासा के विषय में बोल पड़े।

नारद की जिज्ञासा जान कर प्रभु कुछ विचार में पड़ गये और फिर कहने लगे, "नारद! सबसे महान् तो यह पृथ्वी ही दिखाई देती है।"

"जी महाप्रभु!"

तभी भगवान बोल उठे, "किन्तु यह पृथ्वी तो समुद्र से चारों ओर से घिरी हुई है। इससे तो समुद्र बड़ा हो गया।"

नारद कुछ बोल नहीं पाये। वे निरन्तर प्रभु के मुख को निहारते रहे कि कदाचित महाप्रभु कुछ और कहें। भगवान बोले, "किन्तु समुद्र ही कौनसा बड़ा है। उसे तो अगस्त्य मुनि ने चुल्लू भर कर पी लिया था। इसलिए समुद्र भी बड़ा नहीं हुआ। उससे तो अगस्त्य मुनि बड़े सिद्ध होते हैं।"

नारद की समस्या का समाधान नहीं निकल रहा था।

प्रभु ने फिर कहा, "अगस्त्य मुनि भी इतने बड़े आकाश में एक स्थान पर साधारण जुगनू से चमकते दिखाई देते हैं। अतः वे भी बड़े नहीं हो सकते। उनसे बड़ा तो आकाश है।"

नारद असमंजस में पड़ गये। सोचने लगे कि भगवान अब किसको आकाशसे बड़ा बताते हैं। भगवान की बात-में-बात बढ़ती जा रही थी।

प्रभु कहने लगे, "विष्णु महाराज ने जब वामन अवतार धारण किया था तो जिस प्रकार एक पग में उन्होंने धरती को नापा था, उसी प्रकार एक पग में आकाश को भी नाप लिया था। इसलिए आकाश भी बड़ा नहीं हुआ।"

नारद विचार करने लगे कि इस प्रकार तो अब भगवान स्वयं ही सबसे बड़े सिद्ध होते दिखाई देते हैं।

तभी प्रभु बोले, "किन्तु भगवान विष्णु भी तो अधिक महान नहीं हैं। नारद! भगवान विष्णु तो तुम्हारे हृदय मेंविराजमान रहते हैं।"

नारद भगवान का मुख देखने लगे।

भगवान फिर बोले, "इसलिए हे नारद! इस संसार में तुमसे बढ़ कर और कौन महान् हो सकता है।"

"स्वयं को पहचानो और जानो कि तुम ही सबसे महान् हो।"

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book