सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

धन है धूलि समान

एक बार सन्त तुकाराम के घर पर शिवाजी के दूत आये तो उन्होंने दूतों से पूछा"आप घर तो नहीं भूल गये, मैं इस सम्मान का पात्र नहीं हूँ।"

"नहीं, हम भूले नहीं हैं तथा आपकी सेवा में ही उपस्थित हुए हैं।"

"मेरी सेवा? मैं तो पामर प्राणी हूँ। सेवा तो विट्ठल भगवान की करनी चाहिए भाई।"

दूतोंने कहा,"आप जगदीश्वर के परम भक्त हैं, यह सुन कर महाराज छत्रपति शिवाजी ने आपका स्वागत करने के लिए ये हाथी, घोड़े, पालकी और ये सेवकगण भेजे हैं। आप हमारे साथ पधारने की कृपा करें।"

गाँव के लोगों को हँसी उड़ाने का अवसर मिला, "वाह, अब तुका भगत भक्ति छोड़कर राजदरबार में विराजेंगे।"

संत तुकाराम राज दरबारियों से नम्रतापूर्वक बोले, "आप छत्रपति को मेरा सन्देश कह दें कि मेरा आपको सदा-सर्वदा आशीर्वाद है। कृपा करके मुझे मेरे विठ्ठल भगवान की सेवा से विमुख न करें। मैं जहाँ और जैसे हूँ, वहीं ठीक हैं। मेरी यह कुटिया ही मेरा राजमहल है और यह छोटा-सा मन्दिर ही मेरे प्रभु का मेरा राज-दरबार है। वैभव की वासना को जगाकर मुझे इस भक्तिमार्ग से विचलित न करें। मेरे विठोवा उनका कल्याण करें।"

इकट्ठे हुए गाँव वाले फिर हँस पड़े। बोले, "कैसे गँवार हैं तुका भगत। सामने आये राज-वैभव को ठुकराते हैं, घर आयी लक्ष्मी को धक्का मारते हैं।"

छत्रपति शिवाजी ने जब सन्त तुकाराम की अटूट भक्ति की बात सुनी, तो वे ऐसे सच्चे सन्त के दर्शन के लिए अधीर हो उठे और स्वयं तुकाराम के पास जा पहुँचे।

देहू गाँव की जनता को आज और आश्चर्य का अनुभव हुआ। देहू जैसे छोटे गाँव में छत्रपति शिवाजी महाराज का शुभागमन! जय-घोषणा से दिशाएँ गूंज उठीं, 'छत्रपति शिवाजी महाराज की जय।'

तुकाराम को देखते ही शिवाजी उनके चरणों में लोट गये।

"हैं-हैं छत्रपति! राजा को ईश्वर का रूप माना जाता है। आप तो पूजनीय हो।"

तुकाराम ने शिवाजी को उठाया और प्रेम से हृदय से लगा लिया। राजा ने स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली तुकाराम के चरणों में रख दी।

"यह आप क्या कर रहे हैं महाराज? भक्ति में बाधा डालने वाली माया में मुझे क्यों फँसाते हैं? मुझे धन नहीं चाहिए। मुझे जो कुछ चाहिए वह मेरे विठ्ठल प्रभु की कृपा से अनायास मिल जाता है। रास्ते में पड़े चिथड़ों से शरीरको ढकलेता हूँ। कहीं भी सो कर नींद ले लेता हूँ। फिर मुझे किस बात की कमी? मैं तो अपने विठोवा की सेवा में परम सुख का अनुभव कर रहा हूँ। महाराज! आप इस धन को वापस ले जाइये। प्रभु आपका कल्याण करें।"

शिवाजी चकित हुए। बोले, "धन्य हो भक्त शिरोमणि! ऐसी अनुपम निस्पृहता और निर्भयता मैंने नहीं देखी। आपको मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।"

"धन है धूलि समान।"इस सूत्र को ज्ञानपूर्वक आचरण में लाने वाले इस अद्भुत सन्त की चरणधूलि मस्तक पर चढ़ा कर उनको वन्दन करते हुए शिवाजी वापस लौट गये।

भक्तराज तुकाराम ने प्रभु से प्रार्थना की, "ऐसी माया कभी फिर न दिखाना मेरे प्रभु।"  

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