सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

नशा

एक सेठ के पुत्र पर काम का नशा चढ़ गया था। एक दिन उसके यहाँ एक नट आया और अपनी कला का प्रदर्शन किया, किन्तु नट की कन्या को देख कर सेठ का पुत्र देवकुमार हठ कर बैठा, "मैं इसी कन्या से विवाह करूँगा। अगर यह मुझे न मिली तो आत्महत्या कर लूँगा।"

सेठ धनदत्त क्या करते, देवकुमार उनका एकमात्र पुत्र था। उसकी जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा। उन्होंने नट से प्रस्ताव किया कि वह अपनी पुत्री का विवाह देवकुमार से कर दे। किन्तु नट लाल-पीला हो कर बोला, "धन के मद में मतवाले मत बनो। हम कंगाल नहीं। हमारा भी कुल-गौरव है, किसी का सम्मान पैसों से नहीं खरीदा जा सकता।"

नगर-नगर घूमने वाले नट के द्वारा यह अपमान सहकर भी सेठ धनदत्त शान्त रह गये। उन्हें अपने पुत्र के प्राणों की चिन्ता थी। अन्त में सेठ केप्रस्ताव को नट ने स्वीकार कर लिया। उसने कहा, "आपका पुत्र मेरे साथ बारह वर्ष रह कर मेरी कला का अभ्यास करे। जिस दिन किसी नरेश द्वारा वह पुरस्कृत होगा, उसी दिन उसका मेरी पुत्री से विवाह हो जायेगा।

देवकुमार ने नट की शर्त स्वीकार कर ली। माता-पिता तथाअपने घर को त्याग कर वह नट के साथ निकल पड़ा। बारह वर्ष तक उसने नट की कला का अभ्यास किया और कठोर श्रम करके उस विद्या (कला) में प्रवीण हो गया।

नट के साथ देवकुमार वाराणसी गया और वहाँ के नरेश उसकी कला को देखकर प्रसन्न हो गये। नरेश ने कहा, "नट कुमार! हम तुम्हारी कला पर प्रसन्न हैं, माँगो क्या माँगते हो?"

उस समय देवकुमार एक बहुत ऊँचे स्तम्भ के सिरे पर बैठा था। उसकी दृष्टिदूर एक भवन के द्वार पर थी। वह देख रहा था कि वहाँ उस द्वार पर एक मुनि खड़ेहैं और भवन से एक अत्यन्त सुन्दरी नवविवाहिता युवती उनको भिक्षा देने के लिए आयी। युवती पर्याप्त भिक्षा लायी है, किन्तु मुनि थोड़ी सामग्री लेकर कह रहे हैं, "बस करो बहन!"

इसी समय वाराणसी नरेश का संबोधन उसके कान में पड़ा, "नट कुमार!".

देवकुमार चौंक पड़ा, "कौन नट कुमार? मैं एक नगर सेठ का पुत्र और मेरा इतना पतन?"

देवकुमार का नशा उतर गया। उसने स्तम्भ से उतर कर उन मुनि के चरणों में उपस्थित होकर माथ नवाया और मुनि से दीक्षा ग्रहण की। नट कुमारी के मोहजाल से ही नहीं, मायारूपी नटनी के मोहजाल से भी वह छूट गया। नाना योनियों में जन्म लेकर नट की भाँति नाचते रहने की परम्परा से उसने छुटकारा पा लिया।  

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