सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

">
लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ

प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

Like this Hindi book 0

सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

निकृष्टता

प्राचीन काल में किसी देश का राजा बड़ा बुद्धिमान और कुशल शासक था। उसने अपनी राजसभा में उच्च कोटि के पण्डितों तथा धर्म के जानकारों को स्थान दिया था। प्रतिदिन उनसे विभिन्न विषयों पर चर्चा और विचार-विमर्श करता रहता था और राज-कार्य का निर्वाह कर रहा था।

एक दिन उसने दरबार में उपस्थित लोगों से प्रश्न किया, "इस संसार में सबसे तेज काटने वाला कौन है?"

उत्तर में किसी ने बर्र, किसी ने मधुमक्खी, बिच्छू, सर्प आदि का नाम बताया। किन्तु राजा इन उत्तरों से संतुष्ट नहीं दिखाई दिया।उसने अपने वयोवृद्ध और अनुभवी महामन्त्री की ओर देखा, जो मौन रह कर सभी विद्वानों के उत्तरों को सुन रहे थे। राजा ने कहा, "मन्त्रिवर! आपने कुछ नहींबताया।"

मन्त्री बोले, "राजन्! मेरे विचार में विषधर जीव-जन्तुओं की अपेक्षा अधिक तेज काटने वाले दो प्रकार के मानव होते हैं-निन्दक और चाटुकार।"

मन्त्री का उत्तर सुन कर सभा में सन्नाटा छा गया। राजा सहित सभी की प्रश्नमयी दृष्टि को देखकर मन्त्री ने अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा, "राजन! ईर्ष्या और द्वेष आदि के विष से भरा हुआ निन्दक मनुष्य को पीछे से काटता है, जिसके प्रभाव से आत्मा तिलमिला उठती है और दूसरा चाटुकार व्यक्ति हितैषी बन कर, वाणी में खुशामद का मीठा विष भर कर सामने से व्यक्ति के मन में उतारता है। परिणामस्वरूप वह व्यक्ति घमण्ड से चूर-चूर अपने दुर्गुणों को ही गुण मान कर पथभ्रष्ट होता जाता है। वह सत्य और असत्य का निर्णय किये बिना कुकर्म करता हुआ आत्मा के पतन की ओर बढ़ता चला जाता है।

"चाटुकार की बातों से मनुष्य की आत्मा अपनी सुध-बुध खो बैठती है तथा व्यक्ति अपने लाभ-हानि को भूल कर कुमार्ग के गर्त में गिर पड़ता है।"

सभा ने चैन की साँस ली। राजा को भी इस उत्तर से सन्तोष हो गया और उसे अपने महामन्त्री की बुद्धिमत्ता पर गर्व होने लगा।

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book