सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

सच्चा लकड़हारा

मंगल बड़ा सीधा और सच्चा था। अपने परिश्रम की कमाई पर उसे पूरा सन्तोष था। इसीलिए वह निर्धन भी था। दिन-भर जंगल जाकर सूखी लकड़ी काटता और शाम होने पर उनका गट्ठर बाँध कर बाजार जाता। लकड़ियाँ बेचने पर जो रुपये मिलते, उनसे उस दिन के लिए खाद्य-सामग्री खरीद कर वह घर लौटता। एक दिन वह लकड़ी काटने जंगल में गया। एक नदी किनारे पेड़ की एक डाल सूखी दिखी तो वह उसे काटने के लिए पेड़ पर चढ़ गया। डाल काटते समय उसकी कुल्हाड़ी का अगला लोहे का भाग अपने बेंत में से निकल कर नदी में जा गिरा। वह पेड़ से उतर आया। नदी में कई बार डुबकी लगाई किन्तु उसे अपनी कुल्हाड़ी नहीं मिली। वह बड़ा दुःखी हुआ और दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ कर नदी किनारे बैठ गया। आँखों से आँसू बहने लगे। आजीविका का एकमात्र सहारा भी डूब गया था। उसे चिन्ता सता रही थी कि अब वह अपने परिवार का पालन किस प्रकार करेगा?

वन के देवता को मंगल पर दया आ गयी। वह बालक का रूप धर कर प्रकट हो गये और बोले, "भाई! तुम रो क्यों रहे हो?"

मंगल ने अपनी बात बता दी। देवता ने कहा, "रोओ मत! मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी निकालकर लाता हूँ।"

देवता ने पानी में डुबकी लगाई और एक सोने की कुल्हाड़ी निकाल कर बाहर ले आये। बोले, "ये लो अपनी कुल्हाड़ी।"

मंगल ने उसे देखा और कहा, "यह तो किसी बड़े आदमी की कुल्हाड़ी है। मैं गरीब आदमी हूँ, यह तो सोने की कुल्हाड़ी है। मेरी कुल्हाड़ी लोहे की है।"

देवता ने फिर डुबकी लगाई और एक चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर निकले। उसे मंगल को देते हुए कहा, "ये लो अपनी कुल्हाड़ी।"

मंगल बोला, "महाराज, मेरा भाग्य ही खराब है। आपने मेरे लिए इतना प्रयत्न किया लेकिनमेरी कुल्हाड़ी नहीं मिली। वह तो लोहे की है।"

देवता ने तीसरी बार डुबकी लगाई और मंगल की लोहे की कुल्हाड़ी लेकर बाहर निकले। मंगल उसे देख कर प्रसन्न हो गया। उसने अपनी कुल्हाड़ी ले ली। देवता उसकी सच्चाई और ईमानदारी देख कर बड़े प्रसन्न हुए। वे बोले, "मैं तुम्हारी सच्चाई और ईमानदारी से प्रसन्न हूँ। तुम इन दोनों कुल्हाड़ियों को भी ले जाओ।"

सोने और चाँदी की कुल्हाड़ी पाकर मंगल धनी हो गया। उस दिन के बाद फिर वह लकड़ी काटने के लिए नहीं गया। एक दिन उसके पड़ोसी ने उससे पूछा कि वह अब लकड़ी काटने जंगल क्यों नहीं जाता है। सीधे स्वभाव के मंगल ने उसको सारी घटना बता दी।

लालची पड़ोसी ने उससे उस स्थान का पता पूछा जहाँ नदी-किनारे वह पेड़ था। सीधे-सादे मंगल ने स्थान उसे समझा दिया। पड़ोसी दूसरे दिन अपनी कुल्हाड़ी लेकर उसी स्थान पर लकड़ी काटने के लिए उसी पेड़ पर चढ़ा और उसने जान-बूझकर अपनी कुल्हाड़ी नदी में गिरा दी। लकड़हारा नीचे उतर आया। उसने नदी में गोता नहीं लगाया किन्तु बैठ कर यों ही रोने लगा। वन के देवता उसे लालच का फल चखाने के लिए प्रकट हुए और उससे रोने का कारण पूछा। उसने बताया तो देवता नदी में कूद गये और सोने की कुल्हाड़ी निकाल लाये। उसे देखते ही लकड़हारा चिल्ला उठा, "यही मेरी कुल्हाड़ी है।"

"तृ झूठ बोलता है, यह तेरी कुल्हाड़ी नहीं है।"और देवता ने वह कुल्हाड़ी पानी में फेंक कर वहाँ से चल दिये।

लकड़हारे की अपनी कुल्हाड़ी भी गयी। यह लालच का फल था।  

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