लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ

प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

Like this Hindi book 0

सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

रोटियों की भूख

विश्व-विजय की महत्वाकांक्षा लेकर सिकन्दर अपने देश से निकला था। उसमें असाधारण प्रतिभा और योग्यता थी। ईश्वर की ऐसी कृपा रही कि प्रत्येक युद्ध में उसको विजय प्राप्त होती रही। इससे उसका घमंड बहुत बढ़ गया था। विजय के उन्माद में उसने न जाने कितने नगरों और गावों को रौंद डाला। उसने निर्ममतापूर्वक नरसंहार किया, अपार धन-सम्पदा लूटी और अपने सैनिकों को भी मालामाल कर दिया था।

एक बार उसने ऐसे नगर पर धावा बोल दिया जिसमें केवल महिलाएँ और बच्चे ही रहते थे। नगर में रहने वाले युवक पुरुष और वृद्ध युद्ध में मारे गये थे। स्त्रियाँ असहाय थीं, उनके पास रक्षा का कोई साधन नहीं था।

शस्त्र विहीन महिलाओं से किस प्रकार युद्ध किया जाय, यह बात उसकी समझ में नहीं आ रही थी। उस समय उसके साथ गिने-चुने सैनिक थे, उसकी विशाल सेना उसके पीछे आ रही थी।

उसने एक घर के आगे अपना घोड़ा रोका। कई बार द्वार पीटने के बाद बड़ी कठिनाई से द्वार खुला और लाठी टेकती हुई एक बुढ़िया बाहर आयी। सिकन्दर बोला, "घर में कुछ खाना हो तो ले आओ। मुझे भूख लगी है।"

बुढ़िया भीतर गयी और थोड़ी देर में कपड़े से ढका एक थाल लाकर सिकन्दर के आगे कर दिया।

सिकन्दर ने कपड़ा हटाया तो देखा कि उसमें सोने के पुराने गहने हैं। उसे क्रोध आ गया और बोला, "बुढ़िया! यह क्या लाई है? मैंने तुझसे खाना माँगा था, क्या मैं इन गहनों को खाऊँगा?"

"तू सिकन्दर है न? तेरा नाम तो सुना था आज देख भी लिया। सुन रखा था कि सोना ही तेरा भोजन है, इसी भोजन की तलाश में तू यहाँ आया है। यदि तेरी भूख रोटियों से मिटती तो क्या तेरे देश में रोटियाँ नहीं थीं? फिर दूसरों की रोटियाँ छीनने की जरूरत तुझे क्यों पड़ी?"

सिकन्दर के घमंड का शिखर टूट कर नीचे आ गिरा। वह घोड़े से उतर कर बुढ़िया से लिपट गया। बुढ़िया ने उसे प्यार दिया और रोटियाँ भी दी।

सिकन्दर रोटियाँ खाकर चला गया। फिर उसने नगर को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुँचाई। उसने नगर के प्रमुख मार्ग पर एक शिलालेख लगवाया, जिसमें लिखा था, "अज्ञानी सिकन्दर को इस नगर की एक महान् वृद्धा ने अच्छा पाठ पढ़ाया।"

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book