सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

">
लोगों की राय

नई पुस्तकें >> प्रेरक कहानियाँ

प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

Like this Hindi book 0

सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

बुरा पाप होता है, पापी नहीं

स्वामी विवेकानन्द एक बार राजपूताना राज्य में जयपुर के समीप एक छोटी-सी रियासतमें, जिसका नाम ही छोटी सादड़ी था, कुछ दिन के लिए रहने गये थे। रियासत के राजा उनका बड़ा सम्मान करते थे और स्वामी जी ने भी उसे उत्तर भारत के लोगों से सम्पर्क के लिए उचित स्थान और अवसर जान कर वहाँ कुछ दिन रह कर प्रवचन करने का निश्चय किया।

15-20 दिन वहाँ रहने के बाद उनके वापस होने का समय आया। जिस दिन स्वामी जी को विदाई दी जा रही थी उस दिन सादड़ी नरेश ने एक भव्य समारोह का आयोजन किया। संगीत और नृत्य का कार्यक्रम हो रहा था। नाचने के लिए वहाँ की प्रसिद्ध वेश्या नर्तकी को बुलाया गया था।

स्वामी जी को जब पता चला कि वेश्या नर्तकी को बुलाया गया है तो उन्हें बहुत क्षोभ हुआ। क्रोध और क्षोभ के कारण वे कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो रहे थे। उन्हें नरेश पर क्रोध आ रहा था और विचार कर रहे थे कि मेरे इतने दिन के उपदेश का तनिक-सा भी प्रभाव नरेश पर नहीं हुआ और उसने इस प्रकार का कार्यक्रम क्यों आयोजित कर डाला।

उधर नर्तकी वेश्या के कानों में भनक पड़ी कि 'वेश्या को आमन्त्रित किये जाने के कारण स्वामी जी कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो रहे हैं। तो इससे उसको बड़ा दुःख हुआ। उसने अवसर के अनुकूल एक भजन चुना और गाना आरम्भ किया :

प्रभु जी मेरे अवगुन चित न धरो...इक लोहा पूजा में आवत, इक घर वधिक परो। पारस गुन अवगुन नहिं चितवत, कंचन करत खरो। प्रभु जी मेरे अवगुन चित न धरो। स्वामी जी के कानों में यह मधुर ध्वनि गयी तो वे सतर्क हो गये। फिर विचार करने लगे। सोचा, 'मुझे पारस माना जा रहा है। ऐसे में तो मुझे भेद अभेद सब भूल कर समारोह में सम्मिलित होना चाहिए। यह विचार आते ही वे समारोह में उपस्थित हो गये।

समारोह की गंभीरता उल्लास में बदल गयी।

स्वामी जी ने अपने संस्मरणों में लिखा है, "उस दिन मुझे लगा कि आज वास्तविक संन्यास का जन्म हुआ है। क्योंकि वेश्या को देख कर मेरे मन में कोई आकर्षण नहीं था। उसे देख कर मेरा करुणा भाव ही जाग्रत हुआ था। बुरा पाप होता है, पापी नहीं।"

¤ ¤

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book