सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

आत्मबल

मिस्र देश में एक सन्त थे जिनका नाम हिलेरियो था। हिलेरियो पन्द्रह वर्ष की आयु में ही पिता-विहीन हो गये थे। उनके पिता ने काफी सम्पत्ति उनके लिए छोड़ी थी। माता पहले से ही नहीं थीं। अतः सम्पत्ति को हिलेरियो ने विपत्ति की जड माना और उसको अपने निकट सम्बन्धियों और निर्धनों में बाँट दिया और स्वयं रेगिस्तानी भूमि में जीवनयापन करने का निश्चय किया।

जिस जगह पर हिलेरियो ने डेरा डाला, वह समुद्र-तट से दूर झाड़-झंकाड़ के बीच में था। उस स्थान के लिए आवागमन के साधन भी सुलभ नहीं थे।वहाँ डाकुओं का भय बना रहता था। दिन के समय भी कोई व्यक्ति उस ओर अकेले जाने का साहस नहीं करता था।

हिलेरियो के मित्रों और शुभचिन्तकों ने उन्हें उस स्थान पर न रहने का आग्रह किया और कहा कि वह क्षेत्र लूटपाट और मार-काट के लिए कुख्यात है, इसलिए आपको वहाँ नहीं रहना चाहिए। किन्तु हिलेरियो का स्वभाव से निर्द्वन्द्व था, उसका आत्मबल भी बढ़ा हुआ था। वह मृत्यु से भी भयभीत होने वाला नहीं था।

जैसी कि मित्रों को आशंका थी, एक दिन तमाम लोग वहाँ एकत्रित हो गये और बड़े रौब से हिलेरियो से पूछने लगे, "तुम इस बियावान वन में अकेले रहते हो, यदि कोई तुम्हें कष्ट पहुँचाये और तुम्हारा सब सामान उठा कर ले जाय तो?"

हिलेरियो ने उत्तर दिया, "जहाँ तक साज-सामान का प्रश्न है, मेरे पाससाज सामान है ही क्या। पहनने के दो कपड़े और पानी पीने के लिए लोटा। यदि उनकी भी आपको आवश्यकता हो तो मैं अभी देने के लिए तैयार हूँ।"

वे फिर बोले, "यदि डाकू, जो इन जंगलों में निवास करते हैं, तुम्हें अपने कार्य में बाधक समझकर तुम्हें मौत के घाट उतार दें तो तुम सहायता के लिए किसको पुकारोगे?"

"जान से मारना चाहें तो मार दें, मैं सहायता के लिए किसी को नहीं पुकारूँगा। मैं किसी से नहीं डरता हूँ। जीवन में मरना तो एक ही बार है। तो जब कभी भी वह समय आ जाय उसका मैं स्वागत करूँगा।"

हिलेरियो से प्रश्न करने वाले कोई सामान्य नागरिक नहीं, परिवर्तित वेश में उस क्षेत्र में रहने वाले डाकू ही थे। वे उनका उत्तर सुन कर स्तब्ध रह गये।

डाकुओं का समूह वहाँ से चलता बना और मन ही मन हिलेरियो के आत्म-बल की प्रशंसा कर रहा था।  

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