सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

बड़ा आदमी

अंग्रेजी साहित्य के विश्वविख्यात साहित्यकार एच. जी. वेल्स विज्ञान लेखन के क्षेत्र में अग्रणी माने जाते हैं। वह स्वभाव के बहुत दयालु और शान्तिप्रिय व्यक्ति थे। लन्दन के एक अभिजात्य क्षेत्र में उन्होंने अपने लिए एक बहुत बड़ा और भव्य बंगला बनवाया। बंगला बनने के बाद कमरों को अच्छी तरह से सजाया गया और फिर कर्मचारियों को उसमें रहने के लिए कह दिया गया।

कर्मचारियों को भव्य और सुसज्जित कमरे देने के बाद उन्होंने अपने लिए उसी मकान की ऊपरी मंजिल पर एक साधारण कक्ष बनवाया जिसमें वे रात्रि-विश्राम करते थे। लोगों को यह सब देखकर आश्चर्य होता था।

जब बात ज्यादा बढ़ने लगी और लोगों को पचा पाना कठिन हो गया तो एक दिन उनके किसी मित्र ने उनसे पूछ ही लिया, "इतना भव्य भवन बनवाने के बाद भी आपने अपने लिए यह साधारण कक्ष क्यों चुना? जबकि निचली दो मंजिलों में इतने कमरे बने हुए हैं?"

वेल्स को ऐसे प्रश्नों की आशंका थी। उन्होंने बड़ी सरलता के साथ उत्तर दिया, "उन कमरों में हमारे कर्मचारी निवास करते हैं।"

मित्र को सुन कर आश्चर्य हुआ। हँसकर कहने लगा, "आप भी क्या कमाल करते हैं, सामान्य में तो यही प्रचलित है कि भव्य भवन में लोग स्वयं रहते हैं और कर्मचारियों के लिए साधारण कमरे होते हैं, जैसा तुम्हारा यह शयनकक्ष है। किन्तु आपने तो....."

यह सुन कर वेल्स कुछ क्षण मौन रहे। कुछ क्षण बाद बड़े गम्भीर भाव से वेल्स ने कहा, "मैंने अपने कर्मचारियों को भव्य कमरे इसलिए दिये हैं क्योंकि मेरा बचपन एक सीलन-भरे तंग कमरे में गुजरा है। मैं जानता हूँ कि ऐसे कमरों में रहना कितना कष्टकारक होता है।"

मित्र महोदय उत्तर सुनकर अवाक् रह गये।

एच. जी. वेल्स ने पुनः कहा, "आपको शायद पता न हो कि मेरी माँ किसी काल में लन्दन के एक सम्पन्न परिवार में महरी का काम करती थी।"

वह मित्र एच. जी. वेल्स को कई क्षणों तक देखता रहा और फिर मध्यम स्वर में बोला, "पहले तो मैं केवल इतना ही जानता था कि तुम बहुत बड़े साहित्यकार हो किन्तु आज पता चला कि तुम एक बहुत बड़े आदमी भी हो। ऐसे मित्र पर मुझे गर्व है।"  

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