सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

भाव की भूख

प्राचीनकाल में एक राजा परम शिवभक्त था। एक दिन उसने विचार किया कि आगामी सोमवार को भगवान शिवका हौज दूध से लबालब भर दिया जाय। हौज काफी गहरा और चौड़ा था। उसने मन्त्री से मन्त्रणा की और मुनादी करवा दी, "सोमवार को सारे ग्वाले नगर का सारा दूध लेकर मन्दिर आ आयें। भगवान शिव का हौज भरना है, राजा की आज्ञा है। जो इसका उल्लंघन करेगा उसे कठोर दण्ड दिया जायेगा।"

सारे ग्वाले घबरा गये और उस दिन किसी ने एक बूंट भी अपने बच्चों को दूध नहीं दिया। यहाँ तक कि कुछ ने तो बछड़ों को भी बीच में ही थनों से छुड़ा लिया।

जितना दूध आया सब हौज में डाला गया, फिर भी हौज थोड़ा खाली रह गया। राजा चिन्ता में पड़ गया। इसी बीच एक वृद्धा आयी और भक्तिभाव से दूध चढ़ा कर भगवान से कहा, "नगर-भर के दूध के आगे मेरी लुटिया की क्या बिसात, फिर भी भगवन् ! बुढ़िया की श्रद्धाभरी ये दो बूंदें स्वीकार करो।"

बुढ़िया बाहर निकल आयी। सभी ने देखा, भगवान का हौज एकाएक भर गया है। लोगों ने राजा से जाकर कहा तो राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। दूसरे सोमवार को राजा ने फिर वैसा ही आदेश दिया और नगर-भर का दूध हौज में डाला गया, फिर भी हौज खाली ही रहा। पहले सोमवार की भाँति बुढ़िया आयी और उसका दूध पड़ते ही हौज भर गया। सेवकों ने जाकर राजा को सूचना दी, सुन कर राजा का आश्चर्य और बढ़ गया। अगली बार उसने स्वयं उपस्थित रह कर रहस्य का पता लगाने का निश्चयकिया।

तीसरे सोमवार को भी घोषणा की गयी और नगर-भर का दूध राजा ने अपने सामने हौज में डलवाया, हौज खाली ही रहा। इसी बीच बुढ़िया आयी और उसके दूध डालते ही हौज भर गया। बुढ़िया पूजा करके अपने घर चल दी। राजा उसके पीछे हो लिया। कुछ दूर जाने के बाद उसने बुढ़िया का हाथ पकड़ा तो बुढ़िया काँपने लगी। राजा ने उसे शान्त किया और रहस्य जानने के लिए पूछा, "माँ! मुझे बताओ, ऐसी क्या बात है कि तुम्हारे दूध डालते ही खाली हौज भर जाता है?"

"आश्चर्य की बात कुछ नहीं है। घर के सभी बाल-बच्चों को दूध पिला कर जो बचता हैवही दूध लेकर मैं चढ़ाने के लिए आती हूँ। सभी को तृप्त करने से भगवान प्रसन्न होते हैं, भाव से उसे ग्रहण करते हैं और हौज भर जाता है। तुम राजबल से सारे नगर के आबाल-वृद्ध का पेट काटकर दूध अपने अधिकार में करके भगवान को चढ़ाते हो तो उनकी आह के कारणभगवान उसे ग्रहण नहीं करते, व उनका पेट नहीं भरता, इसलिए हौज खाली रहता है।"

राजा को अपनी भूल समझ में आ गयी, उसने बुढ़िया को प्रणाम किया और लौट गया।  

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