सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

पक्षपाती न्याय

सृष्टि के आरम्भ में सत्ययुग का समय था। एक दिन की बात है कि देवताओं ने ऋषियों से कहा, "श्रुतिकहती है कि यज्ञ में अज (बकरे की) बलि होनी चाहिए। अज बकरे का नाम है, फिर आप लोग उसका बलिदान क्यों नहीं करते?"

ऋषियों ने कहा, "देवताओं को मनुष्यों की इस प्रकार परीक्षा नहीं लेनी चाहिए और न उनकी बुद्धि को भ्रम में डालना चाहिए। बीज का नाम ही अज है। बीज के द्वारा अर्थात् अन्नों से ही यज्ञ करने का वेद निर्देश देता है। यज्ञ में पशुवध सज्जनों का धर्म नहीं है।"

परन्तु देवताओं ने ऋषियों की बात स्वीकार नहीं की। दोनों पक्षों में इस प्रश्न पर विवाद बढ़ गया। उसी समय उधर से राजा उपरिचर अपनी सेना के साथ कहीं से आ रहे थे। उनको देखकर देवताओं तथा ऋषियों ने उन्हें मध्यस्थ बनाना चाहा।

उनके समीप जाकर ऋषियों ने पूछा, "यज्ञ में पशु-बलि होनी चाहिए या नहीं?"

राजा उपरिचर ने पहले यह जानना चाहा कि देवताओं तथा ऋषियों में किसका क्या पक्ष है। दोनों पक्षों के विचार जान कर राजा ने सोचा, देवताओं की प्रसन्नता प्राप्त करने का यह अवसर मुझे नहीं खोना चाहिए।

अवसर का लाभ उठा कर उपरिचर ने निर्णय सुनाते हुए कहा, "यज्ञ में पशुबलि होनी चाहिए।"

उपरिचर का निर्णय सुन कर महर्षियों को क्रोध आ गया और वे यह भी समझ गये कि उपरिचर ने सत्य-असत्य का निर्णय न कर देवताओं के साथ पक्षपात किया है। अतः उन्होंने कहा, "महाराज! आपने सत्य का निर्णय न करके पक्षपात किया है, असत्य का समर्थन किया है, अतः हम शाप देते हैं कि अब तुम कभी देवलोक में नहीं जा सकोगे। पृथ्वी के ऊपर भी तुम्हारे लिए स्थान नहीं होगा, तुम पाताल लोक में जाओगे।"

उपरिचर हताश हो गया। देवताओं को उस पर दया आ गयीउन्होंने कहा, "महाराज! ऋषियों के वचन मिथ्या करने की शक्ति हममें नहीं है। हम लोग तो श्रुतियों का तात्पर्य जानने के लिए हठ किये हुए थे। पक्ष तो ऋषियों का ही सत्य है। किन्तु हम लोगों से अनुराग होने के कारण आपने हमारा पक्ष लिया। यह पक्षपात ही था, उसी का यह परिणाम है कि आपको पाताल लोक में जाना पड़ रहा है।"

पक्षपातपूर्ण न्याय का यही परिणाम होता है।  

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