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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

बासी अन्न

श्रावस्ती नगरी के एक सेठ भिगार भोजन कर रहे थे और उनकी सुशीला पुत्रवधू विशाखा हाथ में पंखा लेकर उन्हें हवा कर रही थी। इसी समय एक बौद्ध भिक्षु आ कर उनके द्वार पर रुक गया और भिक्षा माँगी। नगर सेठ भिगार ने भिक्षक की पुकार पर ध्यान नहीं दिया। वह चुपचाप भोजन करते रहे। भिक्षु ने जब फिर पुकारा, तो विशाखा बोली, "आर्य! मेरे श्वसुर बासी अन्न खा रहे हैं, अतः आप अन्यत्र पधारें।"

नगर सेठ के नेत्र यह सुन कर लाल हो गये। उन्होंने भोजन छोड़ दिया और हाथ धोकर पुत्रवधू से कहने लगे, "तुमने मेरा अपमान किया है। मेरे घर से अभी निकल जाओ।"

विशाखा ने नम्रता से कहा, "मेरे विवाह के समय आपने मेरे पिताको वचन दिया था कि मुझसे भूल होने पर आप आठ सद्- गृहस्थों से उसके विषय में निर्णय कराएँगे और तब मुझे दण्ड देंगे।"

"ऐसा ही सही।" क्रोध में नगर सेठ ने कह दिया। वह पुत्रवधू को निकालना चाहते थे। उन्होंने आठ प्रतिष्ठित व्यक्तियों को बुलाया। विशाखा ने सब लोगों के आ जाने पर कहा, "मनुष्य को अपने पूर्वजन्म के फल से सम्पत्ति मिलती है। मेरे श्वसुर को जो सम्पत्ति मिली है, वह भी उनके पहले के पुण्यों का फल है। इन्होंने अब नवीन पुण्य करना बन्द कर दिया है। इसी से मैंने कहा कि ये बासी अन्न खा रहे हैं।"

पंच बने पुरुषों को निर्णय नहीं देना पड़ा। नगर सेठ ने ही लज्जित होकर पुत्रवधू से क्षमा माँगी।

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