सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

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प्रेरक कहानियाँ

डॉ. ओम प्रकाश विश्वकर्मा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :240
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15422
आईएसबीएन :978-1-61301-681-7

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सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये प्रेरक एवं मार्गदर्शक कहानियों का अनुपम संग्रह

पाप की कमाई

दो सगे भाई थे। दोनों के अपने-अपने परिवार थे। किन्तु दोनों परिवार बहुतगरीब थे। ब्राह्मण-पुत्र होने के नाते पोथी औरपत्रा ही उनकी पूँजी अथवा पूँजी प्राप्त करने का साधन था। दोनों भाइयों ने आपस में विचार किया और निर्धनता से छुटकारा पाने के लिए पोथी-पत्रा लेकर दोनों घर से निकल पड़े। चलते-चलते वे समुद्र के किनारे पहुँचे। समुद्र-तट पर मछुआरों की बस्ती थी। दोनों ने वहीं अपने आसन जमाये और खुद को महान ज्योतिषी तथा तन्त्र में प्रवीण घोषित कर मछुआरों को खूब ठगा। थोड़े दिनों में जब उनके पास पर्याप्त धन हो गया तो सोचा कि अब घर वापस चला जाय। दोनों घर के लिए चल दिये।

मछुआरों से उन्होंने बहुत कमा लिया था। उनके पास सोने की मोहरों से भरी थैली थी। दोनों भाई बारी-बारी से उस थैली को ढोते चल रहे थे। जिस समय जिस भाई के पास वह थैली होती उसको लालच आने लगता और वह सोचता कि यदि यह सारी थैली मेरी हो जाय तो कितना अच्छा हो। लालच इतना बढ़ गया था कि दोनों यह सोचने सगे कि क्यों न मैं दूसरे को मारकर इस थैली पर अपना अधिकार जमा लूँ। किन्तु दोनों में परस्पर प्रेम भी बड़ा था, इसलिए मारने को कोई राजी नहींहोता था। इसी प्रकार दोनों चलते-चलते थैली अपनाने की बात सोचते-सोचते घर के पास पहुँच गये। तब जिसके पास उस समय थैली नहीं थी, उसने जिसके पास थैली थी उससे कहा, "भैया! मुझे क्षमा करना! जब-जब यह थैली मैंने थामी मेरे मन में इस थैली पर अधिकार करने की इच्छा उत्पन्न होती रही। उस अधिकार को पाने के लिए तुम्हें मार डालने तक की बात मन में आने लगी। मैं तो इसे नहीं रख सकता, तुम ही इसे रखो।"

यह सुन कर दूसरे भाई को आश्चर्य हुआ। उसने कहा, "भैया! मैं भी तुमसे क्षमा चाहता हूँ। जो बात तुम्हारे मन में उठती थी, वही बात मेरे मन में भी उठती रही है। इस समय यह थैली मेरे पास है, अभी भी मैं उसी प्रकार सोच रहा था।"

"अच्छा तो यही होगा कि हम दोनों के भ्रातृत्व को समाप्त करने वाली इस थैली को हम त्याग दें इसी में हमारा भला है।"

दोनों इस प्रकार बात करते हए जा रहे थे कि सामने ही कूड़ा डालने का गड्ढा दिखाई दिया। यह उनके घर के पासही था। उन्होंने सोने की मोहरों से भरी थैली को उसमें डाल दिया। प्रसन्नता में उन्होंने यह भी विचार नहीं किया कि उस थैली को कम-से-कम ढक तो दें। उसे डाल कर वे अपने घर को चल दिये।

वे घर पहुँचे तो उसी समय उनकी बहन कूड़ा-कर्कट डालने के लिए उस गड्ढे के पास आयी तो उसे वहाँ एक सोने की मुहरों से भरी थैली पड़ी देखी। बहन ने थैली निकाल ली और उसे अपने पल्लू में छिपाना चाहा, जिससे कि अवसर मिलने पर उसे अपने पति के पास पहुँचा सके।

उसी समय एक भाई की पत्नी किसी काम से बाहर आयी और बाहर अपनी ननद को देख कर कहने लगी, "आप वहाँ क्या कर रही हैं?"

ननद ने समझा कि भाभी ने मोहरें देख ली हैं। उसके मन में पाप आ गया और तरकारी काटने की जो छुरी उसके पास थी उसको अपनी भाभी के पेट में भोंक दिया।

भाभी पीड़ा से चीख उठी। उसकी चीख सुन कर उसका पति दौड़ कर बाहर आया। भाई को आता देख बहन वहाँ से भागने लगी तो आँचल में रखी मोहरों की थैली धरती पर गिर पड़ी। बहन घबरा गयी और घबराहट में कुछ नहीं सूझा तो उसने उसी छुरी को अपने पेट में भोंक लिया।

चीख की आवाज सुन कर तब तक दूसरा भाई भी बाहर आ गया था। दोनों भाइयों के सामने दो घायल पड़े हुए थे। दूसरा भाई बोला, "भैया! पाप से कमाये धन ने फेंक दिये जाने पर भी इतना अनर्थ कर डाला।"

दोनों भाई सिर पकड़कर वहीं बैठ गये।  

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