नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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झाँको न मेरी आँख में तुम
इस तरह झाँको न मेरी आँख में तुम,
इस तरह आओ न इतने पास मेरे !
आज तो रंगीन मौसम है, हवा में ताज़गी है,
और अपनी ज़िन्दगी जैसे कि सचमुच ज़िन्दगी है;
ये फुहारें आज तन के पार मन को भी भिगोतीं--
ये बहारें आज मेरे होश को आती डुबोती;
आज हर ध्वनि, ज्योंकि वंशी कूजती हो कुंज-वन में
और बचपन के सलोने स्वप्न-जैसे,
हर नयन में झांकते विश्वास मेरे !
इस तरह आओ न इतने पास मेरे !
किन्तु, जब झकझोरने को कल मुझे आँधी चलेगी,
कल्पना की सलज दुलहन जबकि असमय ही जलेगी;
डगमगाएगी बहुत जब नाव मेरी, तट न होगा --
लाख मैं अनुनय करूँ, पर मुक्त कोई पट न होगा;
एक कोना भी नहीं ऐसा, जिसे अपना कहूँ मैं
नीड़ का तृण भी नहीं ढूंढ़े मिलेगा,
तब न जाने हों कहाँ आवास मेरे !
इस तरह आओ न इतने पास मेरे !
भोर यह अपनी न होगी, मैं इसे पहचानता हूँ,
जो तिमिर का ज्वार पीछे है, उसे मैं जानता हूँ;
हर डगर भटकाएगी कल, हर नज़र ठुकराएगो कल --
आज का सब कुछ मिटाने ही प्रलय-सी आएगी कल;
तब कहाँ मैं, तब कहाँ तुम और यह मौसम कहाँ फिर !
सत्य मानो, सत्य ही हो कर रहेंगे,
उस कुवेला के सभी आभास मेरे !
इस तरह आओ न इतने पास मेरे !
किसलिए फिर बाँधते हो नेह में, बंधते स्वयं हो ?
मैं न चाहूँगा कि कोई भी कभी मुझ पर सदय हो;
क्या असम्भव, आज तुम को बहुत मुझपर रोष होगा --
दर्द से पर दूर होगे कल, मुझे सन्तोष होगा;
इसलिए मानो बुरा मत, आज यदि तुम से कहूँ मैं --
इस तरह झाँको न मेरी आँख में तुम,
इस तरह आओ न इतने पास मेरे !
कल न जाने हों कहाँ आवास मेरे !"
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