लोगों की राय

नई पुस्तकें >> आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :32
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15472
आईएसबीएन :000000

Like this Hindi book 0

आत्मिक प्रगति के लिए अवलम्बन की आवश्यकता

गुरु वन्दना

ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुरेव महेश्वरः।
गुरुरेव परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।।

गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं गुरु महेश है और गुरु ही परमब्रह्म हैं- ऐसे सद्गुरुदेव को नमस्कार है।

अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः।।

जिस परमात्म शक्ति से जड़-चेतन रूप सम्पूर्ण विश्व-ब्रह्माण्ड संव्याप्त है, उस (परमात्म शक्ति) का साक्षात्कार-स्वरूप दर्शन कराने वाले सद्गुरुदेव को नमस्कार है।

नमोऽस्तु गुरवे तस्मै गायत्रीरूपिणे सदा।
यस्य वागमृतं हन्ति विषं संसारसंज्ञकम्।।

सर्वदा गायत्री रूप में विद्यमान रहने वाले उन सद्गुरुदेव को नमस्कार करते हैं, जिनकी वाणीरूप अमृत से संसार (भव-बाधा) रूपी विष विनष्ट हो जाता है।

मामृवत्लालयित्री च पितृवत्मार्गदर्शिका।
नमोऽस्तु गुरु सत्तायै श्रद्धा प्रज्ञायुता च यः।।

माता के समान लालन (दुलार) करने वाली और पिता के समान मार्ग दर्शन (सुधार) करने वाली उस गुरुसत्ता को नमस्कार है, जो श्रद्धा और प्रज्ञा से समन्वित है।

मातरं भगवतीं देवीं श्रीरामञ्च जगद्गुरुम्।
पादपद्यमे तयो: श्रित्वा प्रणमामि मुहुर्मुहुः।।

(विश्व) माता स्वरूप वं० माता भगवती देवी शर्मा तथा जगत् पिता स्वरूप वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पं० श्री राम शर्मा आचार्य- दोनों के चरण कमलों में सिर झुकाकर बारम्बार प्रणाम करता हूँ।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book