लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन

बिना मोल आफत दुर्व्यसन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15476
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

दुर्व्यसनों की समस्या

पान


पान में पियोरीन, पियोरिडीन, एरेकोलीन, एमीलीन, मरक्यूरिक, एलमीन, पियेरोवेटीन इत्यादि विष तत्त्व विद्यमान रहते हैं।

पियरोवेटीन नामक विष हृदय गति को शिथिल तथा निष्क्रिय बनाने वाला होता है। अन्य विषों के कीटाणु मस्तिष्क पर आक्रमण करते हैं और उसकी सूक्ष्मता नष्ट कर देते हैं। इन विषों के प्रभाव से मस्तिष्क अशान्त रहने लगता है। नींद का लोप हो जाता है। पान से कामेन्द्रियाँ उत्तेजित रहती है तथा मन विषयवासनामय गंदे विचारों से परिपूर्ण रहता है। काम वासना को बढ़ाने के कारण यह आध्यात्मिक सात्विक प्रवृत्ति के व्यक्तियों के लिए विष तुल्य है।

पान खाना अशिष्टता, ओछापन तथा कामोत्तेजक स्वभाव का द्योतक है। पान की दुकान पर खड़े होकर पान खाना असभ्य, वासनाप्रिय, दिखावटी, अस्थिरता, लोलुपता को स्पष्ट करता है। मनुष्य का पतन प्रायः पान से ही आरंभ होता है। वह इसे साधारण सा व्यसन मानकर हँसी-हँसी में आरम्भ करता है, किन्तु धीरे-धीरे यह आदत का एक अंग बनता है, तम्बाकू खाने को तबियत करती है, फिर सिगरेट प्रारम्भ होती है, अंत में मदिरा और व्यभिचार के हद तक पहुँच जाती है। अत: चतुर व्यक्ति को इस व्यसन से दूर ही रहना उत्तम है। सुपारी का भी शौक बुरा है। इससे खुश्की रहती है, दाँतों पर अनावश्यक बोझ पड़ता है, चंचलता बढ़ती रहती है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book