लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन

बिना मोल आफत दुर्व्यसन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15476
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

दुर्व्यसनों की समस्या

व्यभिचार


नशा पीकर बुद्धि विकार ग्रस्त होती है। तथा मनुष्य मानसिक व्यभिचार में प्रवृत्त होता है। वासनामूलक कल्पनाओं के वायुमण्डल में फँसा रहने से प्रत्यक्ष व्यभिचार की ओर दुष्प्रवृत्ति होती है।

व्यभिचार हमारी सभ्यता का कलंक है। व्यभिचार एक ऐसी सामाजिक बुराई है, जिससे मनुष्य का शारीरिक, सामाजिक और नैतिक पतन होता है। परिवारों का धन, संपदा, स्वास्थ्य नष्ट हो जाते हैं, बड़े-बड़े राष्ट्र विस्मृति के गर्त में डूब जाते हैं। परिताप का विषय है, नाना रूपों में फैलकर व्यभिचार की महाव्याधि हमारे नागरिकों, समाज, गार्हस्थ एवं राष्ट्रीय जीवन का अध:पतन कर रही है।

दुराचार से होने वाले रोगों की संख्या काफी है। वीर्यपात से गर्मी, सुजाक तथा मूत्र नलिका संबंधी अनेक घृणित रोग उत्पन्न होते हैं, जिनकी पीड़ा नर्कतुल्य है। इनके अतिरिक्त वेश्यागमन से शरीर अशक्त होकर उसमें सिर दर्द, बदहजमी, रीढ़ की बीमारी, मिर्गी, कमजोर आँखें, हृदय की धड़कन का बढ़ जाना, पसलियों का दर्द, बहुमूत्र, पक्षाघात, वीर्यपात, शीघ्रपतन, प्रमेह, नपुंसकता, क्षय, पागलपन इत्यादि महाभयंकर व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं। जीवनी शक्ति क्रमशः क्षय होती रहती है। व्यभिचारी का समाज में सर्वत्र तिरस्कार होता है। उसका उच्च व्यक्तियों में जाना-निकलना आदि बंद हो जाता है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book