आचार्य श्रीराम शर्मा >> बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह) बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह)श्रीराम शर्मा आचार्य
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सद् वाक्यों का अनुपम संग्रह
व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण संबंधी सद् वाक्य
त - न
- दुनिया में आलस्य को पोषण देने जैसा दूसरा भयंकर पाप नहीं है।
- दूसरों की निन्दा करके किसी को कुछ नहीं मिला। जिसने अपने को सुधारा उसने बहुत कुछ पाया।
- दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं।
- दूसरों के साथ वह व्यवहार न करो, जो तुम्हें अपने लिए पसन्द नहीं।
- दृढ़ आत्म-विश्वास ही सफलता की एकमात्र कुञ्जी है।
- दो बातें याद रखने योग्य हैं-एक कर्तव्य और दूसरा मरण।
- दोष और पाप हमारी प्रगति में सबसे बड़े बाधक हैं।
- धन या पद पाने की अपेक्षा लोकश्रद्धा प्राप्त करना अधिक मूल्यवान् है।
- धनवान् नहीं, चरित्रवान् सुख पाते हैं।
- धरती पर प्रेम, आत्मीयता एवं दूसरों के हित में लगे रहना ही पुण्य है।
- धर्म का मार्ग फूलों का सेज नहीं है। इसमें बड़े-बड़े कष्ट सहन करने पड़ते हैं।
- धर्म वही है, जिसका विपत्ति एवं संपत्ति में समान रूप से पालन किया जाए।
- धीर और वीर वे हैं, जो निडर रहते हैं, अधीर नहीं होते और हर कठिनाई का हँसते-मुस्कराते स्वागत करते हैं।
- धैर्य और साहस संसार की हर आपत्ति का अमोघ उपचार है।
- न तो कभी निराश हो और न कभी हार मानो। उठो, खड़े हो जाओ और संघर्ष करो, जब तक विजयी न हो जाओ।
- नर और नारी का दर्जा समानता का है। उसमें छोटे-बड़े का कोई भेदभाव नहीं है।
- नवनिर्माण का अर्थ है-मानव जीवन के उद्देश्य, आदर्श एवं स्तर में उत्कृष्टता का समावेश।
- निठल्लापन व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के लिए अकल्याणकारी है।
- न्याय की चर्चा तो बड़ी सुंदर है, पर इसे प्राप्त कर सकना ईश्वर को प्राप्त कर सकने से भी अधिक दुर्लभ है।
- न्याय की रक्षा और धर्म के समर्थन के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करने वालों को 'नरसिंह' कहते हैं।
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