आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
ऋणहर्ती
संसार में ऋण को सबसे बड़ा शत्रु कहा जाता है। इससे चिंता, अपमान आदि की जो विपन्न स्थिति पैदा होती है वह शारीरिक कष्टों से भी अधिक दु:ख देती है। इसका कारण कभी तो आकस्मिक आपत्ति एवं आवश्यकता भी होती है पर अधिकतर खरचीला स्वभाव और किन्हीं विशेष अवसरों पर उत्साह में आकर अपनी परिस्थिति से अधिक खरच कर डालना होता है। गायत्री उपासना से मनुष्य को यह सद्बुद्धि प्राप्त होती है कि वह अपनी आमदनी और मर्यादा से अधिक खरच नहीं करता चाहे उसे इनमें कष्ट क्यों न उठाना पड़े। ऐसे लोग एक तो ऋण ग्रस्त होते ही नहीं, यदि हो भी जाएँ तो आवश्यक खरचों में कमी करके उऋण होने का प्रयत्न करते हैं। सन्मार्गगामी साधक पर उदय होकर कभी-कभी माता ऐसा अनुग्रह भी करती है कि ऋण मुक्त होने के कोई आकस्मिक संयोग सामने आ जाएँ। धार्मिक दृष्टि से देवऋण, ऋषिगण, पितृऋण वह तीन ऋण प्रत्येक व्यक्ति पर होते हैं और उन्हें चुकाकर ही वह भवबंधनों से छूट सकता है। माता ऐसी ही प्रेरणा और आकांक्षा प्रदान करती है कि सत्कर्मों द्वारा वह तीनों ऋणों को चुकाता हुआ मानवजीवन का उद्देश्य पूर्ण करता है। इन्हीं कारणों से गायत्री को ऋणहत्र कहते हैं।
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