आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
खेचरी
बंध एवं मुद्राएँ योग साधना में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। मस्तक के मध्यबिंदु त्रिकुटी में एक आध्यात्मिक अमृत कलश रहता है। जिह्वा को उलटकर तालुमूल में लगाने और अन्य नियमों के साथ उस अमृत कलश का बिंदुपान करने की विधि खेचरी मुद्रा कहलाती है। इसका विस्तृत विधान योग-ग्रंथों में मौजूद है तथा अनुभवी गुरुओं से सीखा जा सकता है। २४ मुद्राओं में खेचरी को अधिक फलप्रद माना गया है, वह गायत्री स्वरूप ही है। गायत्री साधक प्राय: उसे ही करते हैं।
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