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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की गुप्त शक्तियाँ

गायत्री की गुप्त शक्तियाँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15485
आईएसबीएन :00000

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गायत्री मंत्र की गुप्त शक्तियों का तार्किक विश्लेेषण

वेदमाता गायत्री की शाखाएँ


जिसे अपने में जिस शक्ति की, जिस गुण, कर्म स्वभाव की कमी या विकृत दिखाई पड़ती हो, उसे उस शक्ति वाले देवता की उपासना विशेष रूप से करनी चाहिए। जिस देवता की जो गायत्री है, उसका दशांश जप गायत्री साधना के साथ-साथ करना चाहिए। जैसे कोई व्यक्ति यदि सन्तानहीन है, सन्तान की कामना करनी चाहिए। यदि गायत्री की दस मालायें नित्य जपी जाएँ तो एक माला ब्रह्म गायत्री की भी जपनी चाहिए। मात्र ब्रह्म गायत्री को भी जपने से काम न चलेगा, क्योंकि ब्रह्म गायत्री की स्वतंत्र सत्ता इतनी बलवती नहीं है। देव गायत्रियाँ उस महान् वेदमाता गायत्री की छोटी-छोटी शाखाएँ तभी तक हरी-भरी रहती हैं, जब तक वे मूल वृक्ष के साथ जुड़ी हुई हैं। वृक्ष से अलग कट जाने पर शाखा निष्प्राण हो जाती है, उसी प्रकार अकेली देव गायत्री भी निष्प्राण होती है उनका जप महा गायत्री के साथ ही करना चाहिए।

आरम्भ में देव गायत्री का जप करना चाहिए। साथ ही उस देवता का ध्यान करते जाना चाहिए और ऐसी भावना करनी चाहिए कि वह देवता हमारे अभीष्ट परिणाम को प्रदान करेंगे। नीचे चौबीस देवताओं की गायत्रियाँ दी जाती हैं, इनके जप से उन देवताओं के साथ विशेष रूप से सम्बन्ध स्थापित होता है और उनसे सम्बन्ध रखने वाले गुण, पदार्थ एवं अवसर साधक प्राप्त कर सकते हैं।

1. गणेश गायत्री - ॐ एक दंष्ट्राय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि। तन्नो बुद्धिः प्रचोदयात्।

2. नृसिंह गायत्री - ॐ नृसिंहाय विद्महे, वज्र नखाय धीमहि। तन्नो नृसिंहः प्रचोदयात्।

3. विष्णु गायत्री - ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।

4. शिव गायत्री - ॐ पञ्चवक्त्राय विद्महे, महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्।

5. कृष्ण गायत्री - ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तत्रो कृष्णः प्रचोदयात्।

6. राधा गायत्री - ॐ वृषभानुजाये विद्महे, कृष्णप्रियायै धीमहि। तत्रो राधा प्रचोदयात्।

7. लक्ष्मी गायत्री - ॐ महालक्ष्म्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।

8. अग्नि गायत्री - ॐ महाज्वालाय विद्महे, अग्निदेवाय धीमहि। तन्नो अग्निः प्रचोदयात्।

9. इन्द्र गायत्री - ॐ सहस्रनेत्राय विद्महे, वज्रहस्ताय धीमहि। तन्नो इन्द्रः प्रचोदयात्।

10. सरस्वती गायत्री - ॐ सरस्वत्यै विद्महे, ब्रह्मपुत्र्यै धीमहि। तन्नो देवी प्रचोदयात्।

11. दुर्गा गायत्रीॐ गिरिजायै विद्महे, शिवप्रियायै धीमहि। तन्नो दुर्गा प्रचोदयात्।

12. हनुमान् गायत्री - ॐ अंजनीसुताय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो मारुति: प्रचोदयात्।

13. पृथ्वी गायत्री - ॐ पृथ्वीदेव्यै विद्महे, सहस्रमूत्यै धीमहि। तन्नो पृथ्वी प्रचोदयात्

14. सूर्य गायत्री - ॐ भास्कराय विद्महे, दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्योः प्रयोदयात्।

15. राम गायत्री - ॐ दाशरथये विद्महे, सीतावल्लभाय धीमहि। तन्त्रो रामः प्रयोदयात्।

16. सीता गायत्री - ॐ जनकनन्दिन्यै विद्महे, भूमिजायै धीमहि। तन्नो सीता प्रचोदयात्।

17. चन्द्र गायत्री - ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्।

18. यम गायत्री - ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे, महाकालाय धीमहि। तन्नो यमः प्रयोदयात्।

19. ब्रह्म गायत्री - ॐ चतुर्मुखाय विद्महे, हंसारूढाय धीमहि। तन्नो ब्रह्मा प्रचोदयात्।

20. वरुण गायत्री - ॐ जलबिम्बाय विद्महे, नीलपुत्राय धीमहि। तन्त्रो वरुण: प्रचोदयात्।

21. नारायण गायत्री - ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि। तन्नो नारायणः प्रचोदयात्।

22. हयग्रीव गायत्री - ॐ वाणीश्वराय विद्महे, हयग्रीवाय धीमहि। तत्रो हयग्रीवः प्रचोदयात्।

23. हंस गायत्री - ॐ परमहंसाय विद्महे, महाहंसाय धीमहि। तन्नो हंसः प्रचोदयात्।

24. तुलसी गायत्री - ॐ श्री तुलस्यै विद्महे, विष्णुप्रियायै धीमहि। तन्नो वृन्दा प्रचोदयात्।

इन देव शक्तियों के साथ व्याहतियाँ लगाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि वे वेदोक्त नहीं, तंत्रोक्त हैं। यों तो उपरोक्त देव-शक्तियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के स्वतंत्र एवं विशिष्ट विज्ञान हैं, जो साधना ग्रन्थों में सविस्तार वर्णित है, उन साधनाओं से सम्पूर्ण प्रगति उसी दिशा में होती है। यहाँ उस विस्तृत विज्ञान का वर्णन करना आवश्यक नहीं। यहाँ तो इन देवशक्तियों एवं उनकी गायत्रियों का वर्णन इसलिए किया गया है कि वेदमाता की सर्व फलदायिनी साधना में भी किसी विशेष तत्व को बढ़ाकर किसी विशेष उद्देश्य के लिए एक अतिरिक्त प्रयल भी साथ में जोड़ा जा सके।

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