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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की मंत्र की विलक्षण शक्ति

गायत्री की मंत्र की विलक्षण शक्ति

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15486
आईएसबीएन :00000

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गायत्री मंत्र की विलक्षण शक्तियों का विस्तृत विवेचन

गायत्री मंत्र के देवता


देवता शक्ति के केन्द्र हैं। ब्रह्माण्ड में व्याप्त विशिष्ट शक्तियाँ देव कहलाती हैं। यों ऐसे ३३ कोटि (श्रेणियों) के देवता है। उनका वर्गीकरण ३३ विभागों में किया जाता है। पर इनमें २४ ऐसे हैं, जो मानव प्राणी की भौतिक एवं आत्मिक प्रगति के लिए अत्यन्त सहयोगी एवं उपयोगी हैं। गायत्री के २४ अक्षरों में से प्रत्येक का इन २४ देवताओं से क्रमश: संबंध है। गायत्री मंत्र में इन २४ देवताओं के नाम गिनाये हैं, जो गायत्री के अक्षरों के साथ संबंधित रहकर उपासक की अंतःचेतना में अवतरित होते हैं।

दैवतानि मृणु प्राज्ञ तेषामेवानुपूर्वश:।
आग्नेयं प्रथमं प्रोक्तं प्राजापत्यं द्वितीयकम्।।
तृतीयं च तथासौम्यमीशानं च चतुर्थकम
सावित्रं पच्चमं प्रोक्तं षष्ठमादित्यदैवतम्।।
बार्हस्पत्यं सप्तमं तु मैत्रावरुणमष्टकम्।
नवमं भगदैवत्यं दशमं चार्यमीश्वरन्।।
गणेशमेकादशकं त्वाष्ट्रं द्वादशकं स्मृतम्।
पौष्णं त्रयोदशं प्रोक्तमैन्द्राग्नं च चतुर्दंशन्।।
वायव्य पंचदशकं वामदेव्यं च षोडशम्।
मैत्रावरुणि दैवत्यं प्रोक्तं सप्तदशाक्षरम्।।
अष्टादशं वैश्वदेवमूनविंशं तु मातृकम्।
वैष्णवं विंशतितमं वसुदैवमीरितत्।।
एकविंशतिसंख्याकं द्वाविंश रुद्रदैवतम्।
त्रयोविंशं च कौवेरमाश्विनं तत्त्वसंख्यकम्।।
चतुर्विंशतिवर्णानां देवतानां च संग्रह:।

(१) अग्नि (२) प्रजापति (३) सौम्य (४) ईशान (५) सावित्री (६) आदित्य (७) वृहस्पति (८) मैत्रावरुण (९) भग (१०) ईश्वर (११) गणेश (१२) त्वष्ट्रा (१३) घूमा (१४) आग्नेय (१५) वायव्य (१६) वायुदेव (१७) मैत्रावरुण (१८) वैश्वदेव (१९) मातृका (२०) विष्णु (२१) वासुदेव (२२) रुद्र (२३) कुबेर (२४) अश्विनीकुमार- गायत्री के २४ अक्षरों के उपरोक्त एक-एक देवता हैं।

इसी प्रकार इन २४ अक्षरों में २४ ऋषियों का भी समावेश है। इनमें वे ऋषि-तत्त्व भरे-पड़े-हैं, जो मनुष्य की आत्मा में विविध आध्यात्मिक स्तरों को विकसित करते हैं। देव-शक्तियों विभूतियों की प्रतीक हैं और ऋषि शक्तियों श्रेष्ठताओं और सत्प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मनुष्य को विभूतियाँ ही नहीं श्रेष्ठताएँ भी चाहिए। गायत्री महामंत्र के २४ अक्षर इन दोनों प्रकार की आवश्यकताओं को भी पूर्ण करते हैं।

यों मोटे रूप से विश्वामित्र को गायत्री मंत्र का ऋषि माना जाता है, पर वास्तविक यह है कि उसका तत्वदर्शन अनेकों ऋषियों ने किया है। अनेकों ने अपने जीवन गायत्री माता के अंचल में बैठकर विकसित किये हैं और अनेकों देवताओं का पयपान करके अपना ऋषित्व परिपुष्ट किया है। ऐसे महाभाग ऋषियों में २४ प्रमुख हैं, ऐसे स्वनामधन्य ऋषियों की आत्मा गायत्री के २४ अक्षरों के साथ अभी भी लिपटी हुई है और साधक की आत्मा को अपनी दिव्य आभा से अलौकिक करती है। वे २४ ऋषि जो गायत्री के २४ अक्षरों के साथ अविच्छिन्न रूप से सम्बद्ध है, निम्न हैं-

अथात: श्रूयतां ब्रह्मन्वर्णऋष्यादिकांस्तथा।
छन्दांसि देवतास्तद्वत् क्रमात्तत्वानि चैव हि।।

''हे ब्रह्मन्! अब गायत्री के २४ वणों के ऋषि, छन्द, देवता आदि को क्रमश: कहते हैं।''

वामदेवोऽत्रिर्वसिष्ठ: शुक्र: कण्व: पराशर:।
विश्वामित्रो महातेजा: कपिल: शौनको महान्।।
याज्ञवल्क्यो भरद्वाजो जमदग्निस्तपोनिधि:।
गौतमो मुद्‌गलश्चैव वेदव्यासश्च लोमश:।।
अगस्त्य: कौशिको वत्स: पुलस्त्यो मांडुकस्तथा।
दुर्वासास्तपसां श्रेष्ठो नारद: कश्यपस्तथा।।

गायत्री के ऋषि ये हैं- वामदेव, अत्रि, वशिष्ठ, शुक्र, कण्व, पराशर, महातेजस्वी विश्वामित्र, कपिल, शौनक, याज्ञवल्क्य, भरद्वाज, जमदग्नि, गौतम, मुद्‌गल, वेदव्यास, लोमश, अगस्थ्य, कौशिक, वत्स, पुलर, मांडूक, दुर्वासा, नारद और कश्यप।

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