आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री प्रार्थना गायत्री प्रार्थनाश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री प्रार्थना
श्री गायत्री चालीसा
दोहा
हीं, श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड।
शान्ति, क्रान्ति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड।।
जगत् जननि, मंगल करनि, गायत्री सुख धाम।
प्रणवों सावित्री. स्वधा. स्वाहा पूरन काम।।
शान्ति, क्रान्ति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड।।
जगत् जननि, मंगल करनि, गायत्री सुख धाम।
प्रणवों सावित्री. स्वधा. स्वाहा पूरन काम।।
भूर्भुव: स्व: ॐ युत जननी।
गायत्री नित कलिमल दहनी।।
अक्षर चौबीस परम पुनीता।
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता।।
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा।
सत्य सनातन सुधा अनूपा।।
हंसारूढ़ श्वेताम्बर धारी।
स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी।।
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई।
सुख उपजत-दुःख दुरमति खोई।।
कामधेनु तुम सुरतरु छाया।
निराकार की अद्भुत माया।।
तुम्हरी शरण गहै जो कोई।
तरै सकल संकट सों सोई।।
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।।
तुम्हरी महिमा पार न पावैं।
जो शारद शत मुख गुन गावैं।।
चार वेद की मातु पुनीता।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।।
महामंत्र जितने जग माही।
कोऊ गायत्री सम नाहीं।।
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै।
आलस पाप अविद्या नासै।।
सृष्टि बीज जग जननि भवानी।
कालरात्रि वरदा कल्याणी।।
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते।
तुम सों पावें सुरता तेते।।
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना।
तुम सम अधिक न जग में आना॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा॥
जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई।
पारस परसि कुघातु सुहाई॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाईं।
माता तुम सब ठौर समाईं॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता।
पालक, पोषक, नाशक त्राता॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी।
तुम सन तरे पातकी भारी॥
जापर कृपा तुम्हारी होई।
तापर कृपा करे सब कोई॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें।
रोगी रोग रहित ह्वै जावें॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा।
नाशै दु:ख हरै भव भीरा।।
गृह क्लेश चित्त चिंता भारी।
नासै गायत्री भय हारी।
संतति हीन सुसंतति पावें।
सुख संपत्ति मुद मोद मनावें॥
भूत पिशाच सबै भय खावें।
यम के दूत निकट नहिं आवें॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई।
अछत सुहाग सदा सुखदाई॥
घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी।
विधवा रहे सत्य व्रत धारी॥
जयति जयति जगदंब भवानी।
तुम सम और दयालु न दानी॥
जो सद्गुरु सौं दीक्षा पावें।
सो साधन को सफल बनावें॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी।
लहैं मनोरथ गृही विरागी॥
अष्ट सिद्ध नवनिधि की दाता।
सब समर्थ गायत्री माता॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, योगी।
आरत, अर्थी, चिन्तित भोगी॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें।
सो सो मन वांछित फल पावें॥
बल, बुद्धि, विद्या, शील स्वभाऊ।
धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ॥
सकल बढ़े उपजें सुख नाना।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना॥
गायत्री नित कलिमल दहनी।।
अक्षर चौबीस परम पुनीता।
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता।।
शाश्वत सतोगुणी सतरूपा।
सत्य सनातन सुधा अनूपा।।
हंसारूढ़ श्वेताम्बर धारी।
स्वर्ण कांति शुचि गगन बिहारी।।
पुस्तक पुष्प कमण्डलु माला।
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला।।
ध्यान धरत पुलकित हिय होई।
सुख उपजत-दुःख दुरमति खोई।।
कामधेनु तुम सुरतरु छाया।
निराकार की अद्भुत माया।।
तुम्हरी शरण गहै जो कोई।
तरै सकल संकट सों सोई।।
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली।
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली।।
तुम्हरी महिमा पार न पावैं।
जो शारद शत मुख गुन गावैं।।
चार वेद की मातु पुनीता।
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता।।
महामंत्र जितने जग माही।
कोऊ गायत्री सम नाहीं।।
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै।
आलस पाप अविद्या नासै।।
सृष्टि बीज जग जननि भवानी।
कालरात्रि वरदा कल्याणी।।
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते।
तुम सों पावें सुरता तेते।।
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे।
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे।।
महिमा अपरम्पार तुम्हारी।
जै जै जै त्रिपदा भय हारी॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना।
तुम सम अधिक न जग में आना॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा।
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेशा॥
जानत तुमहिं तुमहिं ह्वै जाई।
पारस परसि कुघातु सुहाई॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाईं।
माता तुम सब ठौर समाईं॥
ग्रह नक्षत्र ब्रह्माण्ड घनेरे।
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे॥
सकल सृष्टि की प्राण विधाता।
पालक, पोषक, नाशक त्राता॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी।
तुम सन तरे पातकी भारी॥
जापर कृपा तुम्हारी होई।
तापर कृपा करे सब कोई॥
मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें।
रोगी रोग रहित ह्वै जावें॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा।
नाशै दु:ख हरै भव भीरा।।
गृह क्लेश चित्त चिंता भारी।
नासै गायत्री भय हारी।
संतति हीन सुसंतति पावें।
सुख संपत्ति मुद मोद मनावें॥
भूत पिशाच सबै भय खावें।
यम के दूत निकट नहिं आवें॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई।
अछत सुहाग सदा सुखदाई॥
घर वर सुखप्रद लहैं कुमारी।
विधवा रहे सत्य व्रत धारी॥
जयति जयति जगदंब भवानी।
तुम सम और दयालु न दानी॥
जो सद्गुरु सौं दीक्षा पावें।
सो साधन को सफल बनावें॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी।
लहैं मनोरथ गृही विरागी॥
अष्ट सिद्ध नवनिधि की दाता।
सब समर्थ गायत्री माता॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, योगी।
आरत, अर्थी, चिन्तित भोगी॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें।
सो सो मन वांछित फल पावें॥
बल, बुद्धि, विद्या, शील स्वभाऊ।
धन, वैभव, यश, तेज, उछाऊ॥
सकल बढ़े उपजें सुख नाना।
जो यह पाठ करै धरि ध्याना॥
यह चालीसा भक्ति युत, पाठ करे जो कोय।
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय॥
तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय॥
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