आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री साधना क्यों और कैसे गायत्री साधना क्यों और कैसेश्रीराम शर्मा आचार्यडॉ. प्रणव पण्डया
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गायत्री साधना कैसे करें, जानें....
गायत्री शक्ति क्या है?
प्राणों को तारने वाली क्षमता के कारण आदि शक्ति, गायत्री कहलाई। ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में इस अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है-'गयान् त्रायते सा गायत्री।' अर्थात् जो गय (प्राण) की रक्षा करती है, वह गायत्री है। शंकराचार्य भाष्य में गायत्री शक्ति को स्पष्ट करते हुए कहा गया है-'गीयते तत्त्वमनया गायत्रीति' अर्थात् जिस विवेक बुद्धि-ऋतम्भरा प्रज्ञा से वास्तविकता का ज्ञान होता है, वह गायत्री है।
सत्य और असत्य का, सही व गलत का, क्या करना, क्या न करना, इसका निर्णय सही ढंग से करने वाली सदबुद्धि ऐसी अद्भुत शक्ति है, जिसकी तुलना में विश्व की और कोई शक्ति मनुष्य के लिए फायदेमंद नहीं। दूसरी ओर सांसारिक बुद्धि चाहे कितनी ही चतुराई भरी क्यों न हो, कितनी ही तेज, उपजाऊ व कमाऊ क्यों न हो, उससे सच्ची भलाई नहीं हो सकती और नहीं आतरिक सुख-शान्ति के दर्शन हो सकते हैं। भोग-विलास, ऐशो आराम की थोड़ी बहुत सामग्री वह जरूर इकट्ठा कर सकती है, किन्तु इनसे चिन्ता, परेशानी, व अहंकार आदि ही बढ़ते हैं और इनका बोझ जिन्दगी को अधिक कष्टदायक बनाता है। वह थोड़ी सी बाहरी तड़क-भड़क दिखाकर भीतर की सारी शान्ति नष्ट कर देती है। जिसके कारण छोटे-मोटे अनेकों शारीरिक व मानसिक रोग पैदा हो जाते हैं, जो हर घड़ी बेचैन बनाए रखते हैं। ऐसी बुद्धि जितनी तेज होगी, उतनी ही विपत्ति का कारण बनेगी। ऐसी बुद्धि से तो मन्दबुद्धि होना ही अच्छा है।
गायत्री उस बुद्धि का नाम है जो अच्छे गुण, कल्याणकारी तत्त्वों से भरी होती है। इसकी प्रेरणा से मनुष्य का शरीर और मस्तिष्क ऐसे रास्ते पर चलता है कि कदम-कदम पर कल्याण के दर्शन होते हैं। हर कदम पर आनन्द का संचार होता है। हर क्रिया उसे अधिक पुष्ट, सशक्त और मजबूत बनाती है और वह दिनों दिन अधिकाधिक गुण व शक्तिवान बनता जाता है; जबकि दुर्बुद्धि से उपजे विचार और काम हमारी प्राण शक्ति को हर रोज कम करते जाते हैं। गलत आदतें, दुर्व्यसन में शरीर दिनों दिन कमजोर होता जाता है, स्वार्थ भरे विचारों से मन दिन-दिन पाप की कीचड़ में फंसता जाता है। इस तरह जिन्दगी के लोटे में कितने ही छेद हो जाते हैं, जिससे सारी कमाई हुई शक्ति नष्ट हो जाती है। वह चाहे जितनी बुद्धि दौड़ाए नई कमाई करे; पर स्वार्थ, भय और लोभ आदि के कारण चित्त सदा दुःखी ही रहता है और मानसिक शक्तियां नष्ट होती रहती हैं।
ऐसी दुर्बुद्धि से इस अमूल्य जीवन को यूं ही गवां रहे व्यक्तियों के लिए गायत्री एक प्रकाश है, एक सच्चा सहारा है, एक आशापूर्ण संदेश है, जो उनकी सद्बुद्धि को जगाकर इस दलदल से उबारता है उनके प्राणों की रक्षा करता है व जीवन में सुख, शान्ति व आनन्द का द्वार खोल देता है।
इस तरह गायत्री कोई देवी, देवता या कल्पित शक्ति नहीं है, बल्कि परमात्मा की इच्छाशक्ति है जो मनुष्य में सद्बुद्धि के रूप में प्रकट होकर उसके जीवन को सार्थक एवं सफल बनाती है।
जीवन व सृष्टि के रहस्यों की खोज में साधनारत ऋषियों ने ध्यान की गहराइयों में पाया कि इनके मूल में सक्रिय शक्तियां शब्द रूप में विद्यमान हैं। आदिशक्ति का साक्षात्कार २४ अक्षरों वाले मंत्र के रूप में हुआ, जिसका नाम इसकी प्राणरक्षक क्षमता के कारण गायत्री पड़ा। इसकी खोज का श्रेय ऋषि विश्वामित्र को जाता है।
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