लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1

इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15494
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

विज्ञान वरदान या अभिशाप

प्रामाणिक तंत्र का विकास


शिक्षकों को शिक्षित करने के लिए ऊँचे स्तर के व्यक्तित्व चाहिए और प्रेरणाप्रद वातावरण भी। इन दोंनों ही आवश्यकताओं की पूर्ति शांतिकुंज में होती है। इस परिकर में प्राय: पाँच सो व्यक्ति स्थाई रूप से रहते हैं, इनमें से अधिकाँश ग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट स्तर के हैं। ऊँची नोकरियाँ छोड़कर, सूत्र संचालक को उदाहरण मानकर, मात्र युग सृजन शिल्पी संबंधी सेवा कार्यों के लिए समर्पित भाव से आए हैं। शरीर निर्वाह के ब्राह्मणोचित साधन लेकर गुजारा चलाते हैं और उत्साह पूर्वक बारह घंटे काम करते हैं। इनमें से कई ऐसे हैं, जो बैंक में जमा अपनी पूँजी से ही सारी व्यवस्था चला लेते हैं व आश्रम से कुछ नहीं लेते। यह अपने आप में एक अनोखा व विरला उदाहरण है।

कर्मठ और भावनाशील कार्यकर्त्ताओं की सर्वत्र कमी है, पर वे शांतिकुंज को अनायास ही मिलते चले आ रहे हैं, जिनमें एम.डी, एम.एस. एम. टेक, बी.आई.एम.एस., एम.एस.सी. पी.एच.डी., एल.एल.एम. स्तर के अनेक कार्यकर्ता हैं। शांतिकुंज के संचालकों का व्यक्तित्व जिन्होंने निकट से हर कसौटी पर परख कर देखा है, उनका मन यही हुआ है कि ऐसे वातावरण में रहकर, ऐसी कार्यशैली अपना कर अपने को धन्य बनाना चाहिए। इन कार्यकर्ताओं द्वारा विनिर्मित वातावरण का ही प्रभाव है कि शिविरार्थों अपने जीवन क्रम में कायाकल्प जैसी स्थिति लेकर वापस लौटते हैं। प्रतिभा, प्रखरता और प्रामाणिकता को कसौटी पर कसा हुआ, पुरोधाओं-समर्पित प्रतिभाओं का यह परिकर ही इस संस्था का मेरुदंड है।

गाँव-गाँव नवयुग का अलख जगाने की आवश्यकता को समझते हुए चार संगीतज्ञ एवं एक वक्ता, इस प्रकार पाँच-पाँच की मंडलियाँ निरंतर कार्य क्षेत्र में घूमती रहती हैं। इनके लिए गाड़ियों की व्यवस्था है। वर्ष भर में डेढ़ हजार सम्मेलन हो जाते हैं, जिनमें दीप यज्ञ अथवा वार्षिकोत्सव मनाए जाते हैं। इसके लिए स्थाई भवनों के रूप में प्रज्ञा संस्थान विनिर्मित हैं, जो पूरे भारत में ३ooo से भी अधिक हैं तथा अन्यान्य स्थानों पर सक्रिय कार्यकर्ताओं की शाखाएँ हैं। आयोजनों में सम्मिलित होने की एक ही दक्षिणा है कि एक दुष्प्रवृत्ति को छोड़ा और एक सत्प्रवृत्ति को अपनाया जाए। इस क्रम में हजारों लाखों लोगों ने अपनी बुराइयाँ छोड़ीं व अच्छाइयाँ ग्रहण की हैं।

मिशन से प्रभावित लोग न्यूनतम एक घंटा समय, पचास पैसा अंशदान प्रतिदिन देते रहते हैं। इन्हें स्थानीय परिकर में सत्प्रवृत्ति संवर्धन के लिए अंशदान देते रहने का व्रत लेना पड़ता है। कितने ही लोग आधा समय परिवार एवं आधा समय समाज सेवा के लिए लगाते हैं। इस श्रेणी के वानप्रस्थ भी मिशन ने बड़ी संख्या में बनाए हैं। इनमें महिला जाग्रति का उद्घोष करने वाली महिलाओं की संख्या पचास प्रतिशत से अधिक हो है। आशा की गई है कि यह प्रचलन समाज के हर क्षेत्र को अवैतनिक, अनुभवी कार्यकर्ता बड़ी संख्या में प्रदान करेगा।

किसी समय भारत के मनीषी-लोक सेवी सारे विश्व को मार्ग दर्शन देने में सक्षम थे। इतनी बड़ी संख्या में लोक सेवी, वानप्रस्थ परंपरा के अंतर्गत ही उपजते विकसित होते थे। अपने उत्तरदायित्व सीमित रखकर अथवा उनसे निवृत्त होकर पूरे समय या सीमित समय के लिए वे लोक मंगल साधना हेतु निकल पड़ते थे। देव मानव गढ़ने वाली यह परंपरा पुन: जाग्रत की जानी चाहिए।

शांतिकुंज में आर्थिक स्वालंबलन के लिए कुटीर उद्योगों के प्रशिक्षण की विशेष व्यवस्था बनाई गई है। इसके द्वारा महिलाएँ अतिरिक्त आजीविका से पूरे परिवार को इतना सहारा देने का प्रयत्न करती हैं कि घर का एक व्यक्ति निरंतर समाज निर्माण के कार्यों में लगा रहे। ऊपर को पंक्तियों में संक्षेप में उन संभावनाओं को व्याख्या की गई है एवं जिनने अनेकों को प्ररेणा दी है।

संत बिनोवा कहते थे कि किसी संस्था को तभी तक जीवित रहना चाहिए, जब तक जनता उसके कार्यों का मूल्यांकन करके समुचित सहयोग प्रदान करे। यदि सहयोग बंद हो जाए, तो समझना चाहिए कि वहाँ लोक सेवियों की भावना व श्रमशीलता में कहीं त्रुटि आ रही है। तब अच्छा है कि उस तंत्र को बंद कर दिया जाए। शांतिकुंज ने अपने को इसी कसौटी पर कसे जाने के लिए आरंभ से प्रस्तुत रखा है। यहाँ की गतिविधियों का के लिए कुछ देना उचित है, तो बिना माँगे ही स्वेच्छापूर्वक कुछ देना, इसी आधार पर शांतिकुंज की अब तक प्रगति हुई है और यदि आगे उसे बढ़ना है, तो उसका भी आधार यही होगा।

एक छोटे मॉडल शान्तिकुंज का उल्लेख यहाँ इसलिए किया गया कि हर क्षेत्र की प्रतिभाएँ अपने लिए कार्य सोचें और युग सृजन की अभीष्ट आवश्यकताओं को पूरा करें, नव सृजन की आधारशिला रखने हेतु महत्वपूर्ण कदम उठाएँ।

* * *

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book