लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1

इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15494
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

विज्ञान वरदान या अभिशाप

सदुपयोग बन पड़े, तो परिवर्तन संभव


मनुष्य अनंत शक्तियों का भंडार है। उसमें से बहुत थोड़ा अंश ही शरीर व्यवसाय में खर्च हो पाता है। शेष शक्ति प्रसुप्त मूर्छित स्थिति में पड़ी रहती है। काम में न आने पर पैने औजारों को भी जंग खा जाती है। प्रतिभा के अंग-प्रत्यंगों का प्रयोग न होने पर, मनुष्य भी मात्र कोल्हू के बैल की तरह किसी प्रकार जिंदगी के दिन काटता रहता है, पर जब भी उसका उत्साह उभरता है, तभी तत्परता, लगन, स्फूर्ति और गहराई तक उतरने, खाने-पीने की ललक, अपने जादू भरे चमत्कार दिखाने लगती है व्यक्ति कहीं से कहीं जा पहुँचता है और साधारण परिस्थितियों में भी ऐसा कुछ कर दिखाने लगता है, जिनसे आश्चर्यचकित हुआ जा सके।

पिछली तीन सदियों को आत्म जाग्रति का समय कहना चाहिए, भले ही वह भोतिक प्रयोजन के पक्ष में ही सीमित क्यों न रही हों। शक्ति का जहाँ भी प्रयोग होता है, वह अपना काम करती है। उसने किया भी। भोतिक प्रगति की दिशा में उसका को एक नए दर्शन रूप में गढ़कर तैयार कर दिया।

नई स्फूर्ति के साथ जब नवीनता उभरती है, तो उसका परिणाम भी असाधारण होता है। प्रगति के नाम पर बढ़ा-चढ़ा भौतिकवाद और प्रत्यक्षवाद संसार के सामने आया और उसने जन-जन को प्रभावित किया। आविष्कारों ने सुविधा-साधनों के अंबार जमा किए। बुद्धिमत्ता के नाम पर इतनी अधिक जानकारियाँ एकत्रि कर ली गई, जो किसी को भी अहंकारी बनाने के लिए पर्याप्त हो सकती थीं-हुई भी। वैसे जानकारियाँ बढ़ाना सराहना के योग्य कार्य है, इसलिए प्रगतिशीलता का श्रेय भी उन सबको मिला है, जिनने यह उत्साह और पुरुषार्थ दिखाया।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book