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आचार्य श्रीराम शर्मा >> जगाओ अपनी अखण्डशक्ति

जगाओ अपनी अखण्डशक्ति

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15495
आईएसबीएन :00000

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जगाओ अपनी अखण्डशक्ति

संत एवं धर्म ग्रन्थ हमारे सच्चे पथ प्रदर्शक


इस श्रृंखला के पिछले समस्त लेखों में तन, मन और आत्मा के विकास से सम्बन्धित जितने भी तथ्य सामने आये वे सभी मूल रूप में किसी न किसी धर्मग्रन्थ द्वारा निर्देशित एवं संग्रहित किये गये हैं। और इन धर्मग्रन्थों के रचयिता हमारे महान संत एव ऋषि मुनि रहे हैं।

पिछले सभी लेखों मे इस बात पर विशेष बल दिया गया कि मन और आत्मा के विकास के लिए हमें प्रातः सायं एवं रात्रि को सोने के पहले ईश प्रार्थना, सतों के उपदेश, एवं उनक्रा जीवन आदि का नियमित अध्ययन, मनन तथा प्राणायाम, ध्यान आदि का नियमित अभ्यास करना चाहिए।

अतः इस हेतु मैं अपने जीवन में शामिल कुछ ईश प्रार्थनाएँ, धर्मग्रन्थों की कुछ महत्वपूर्ण अंश एवं संतों के कुछ अमूल्य वचनों को आपके समक्ष रख रहा हूँ। इनमें से जो भी आपको अनुकरणीय एवं उपयोगी लगे आप उसे अपने से जोड़ने एवं आध्यात्मिक लाभ उठाने में उपयोग कर सकते हैं और इन ग्रन्थों मे बिखरे अमूल्य मोतियों से यदि आप कुछ लाभ उठा सके तो मैं अपना जीवन सार्थक समझूँगा।

 

1. ईश प्रार्थनाएँ

1. गणेश वंदना

गजाननं भूतगणादिसेवितं
कपित्थ जंबू फल चारु भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाश कारकं,
नमामिविघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।

 

2. शिव वंदना

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसार सारं भुजगेन्द्रहारं।
सदावसंतं हृदयारविन्दे भवं भवानी सहितं नमामि।।  

 

3. परमात्म वंदना

त्वमेव माता च पिता त्वमेव.
त्वमेव बन्धुश्चसखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव,
त्वमेव सर्वं मम देव देव।।

 

4. कृष्ण वंदना

वसुदेव सुत देवं कंस चाणूर मर्दनम्।
देवकी परमानन्दं कृष्णं वंदे जगत गुरूं।।

 

5. राधा वंदना

मेरी भव बाधा हरो राधा नागर सोइ।
जा तन की झांई परे श्याम हरित दुति होइ।।

 

6. माँ दुर्गा की वंदना

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते।।

 

7. हनुमान वंदना

(अ) श्री गुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुर सुधारि।
बरनउं रघुबर विमल जसु जो दायकु फल चारि।। 
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं हरहु कलेस विकार।।

(ब) पवन तनय संकट हरन मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप।।

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