आचार्य श्रीराम शर्मा >> जागो शक्तिस्वरूपा नारी जागो शक्तिस्वरूपा नारीश्रीराम शर्मा आचार्य
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नारी जागरण हेतु अभियान
भौतिकता का प्रवाह
भौतिकता का प्रवाह आज हर वस्तु को छूने लगा है। उसने प्रेम जैसे विशुद्ध अध्यात्म तत्त्व को भी अछूता नहीं छोड़ा। आज प्रेम शब्द का प्रचलित अर्थ युवा-नर-नारियों के बीच चल रही वासनात्मक गतिविधियाँ ही तो हैं।
उपन्यास, कहानियाँ, फिल्म, चित्र, गीत आदि कला के सभी अंग जिस प्रकार प्रेम की परिभाषा करने लगे हैं, उसके अनुसार वासनात्मक मांसलता का प्रदर्शन, यौन आकर्षण अथवा रूप यौवन की उच्छृखल उमंगों का नाम ही प्रेम है। सारा योरोप इस मर्ज का मरीज है। लम्बे चौड़े प्रेम पत्रों की जो रेल दौड़ती रहती है, उसका केन्द्र बिन्दु वासना ही होती है। सो इन दिनों उन खतरों से बहुत सावधान रहा जाना चाहिए और ऐसे प्रसंगों का अवरोध करना चाहिए, जिनसे पतन की फिसलन का पथ प्रशस्त होता हो। नर-नारी के बीच शालीनता की मर्यादाओं का बने रहना प्रेम-पथ में अवरोध नहीं, सहायक ही माना जाना चाहिए।
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