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आचार्य श्रीराम शर्मा >> जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँ

जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15497
आईएसबीएन :00000

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जन्मदिवस को कैसे मनायें, आचार्यजी के अनुसार

लोक-शिक्षण के लिए यह करें


इस उद्‌देश्य की पूर्ति के लिए लोक-शिक्षण का साहित्य बड़े परिमाण में बने और फैले उसकी आवश्यकता तो है ही। साथ ही यह भी अपेक्षित है कि जन-जन को प्रेरणाप्रद, उत्साह भरे वातावरण में ऐसा कुछ सिखाया-समझाया जा सके, जिससे वह आत्म-चिन्ह आत्म-शोधन, आत्म-निर्माण एवं आत्म-विकास के लिए अधिकाधिक सोचे, विचारे और जो करना चाहिए, जो अपनाया जाना चाहिए उसके लिए तत्परतापूर्वक अग्रसर हो सके।

यह कार्य जन्मदिवस समारोह मनाने की प्रक्रिया के साथ जितने अच्छे ढंग से हो सकता है उतना और किसी प्रकार से नहीं। संसार के सभी सभ्य देशों में व्यक्तियों के जन्म दिन मनाये जाते हैं, उस दिन मित्रगण पुष्प आदि के उपहार भेंट करने आते हैं। मनोरंजन के, जलपान के छोटे-छोटे कार्यक्रम रहते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैं और प्रेम प्रदर्शित करते हैं। अपने यहाँ इनका प्रचलन कुछ अधिक गम्भीरतापूर्वक होना चाहिए और उसमें जीवन के सदुपयोग की प्रेरणा देने वाला आध्यात्मिक पुट जुड़ा रहना चाहिए। मनोरंजन एवं प्रोत्साहन मात्र पर्याप्त नहीं, उसके साथ-साथ उल्का की प्रेरणा का जुड़ा रहना भी आवश्यक है। जन्म-दिन समारोहों का प्रचलन इसी दृष्टि से किया जाना चाहिए।

यों प्रचलित अनेक पर्व-त्यौहार आते और मनाये जाते हैँ, पर व्यक्तिगत दृष्टि से मनुष्य का अपना जन्म-दिन ही उसके लिए सबसे बड़े हर्ष, गौरव एवं सौभाग्य का दिन हो सकता है। राम के जन्मदिन की तिथि रामनवमी और कृष्प के जन्मदिन की जन्माष्टमी जितनी महत्वपूर्ण है, उतनी हो किसी सामान्य व्यक्ति के जीवन में उसके लिए उसकी जन्मतिथि हो सकती है। अपने अवतरण का दिन अपने लिए किसी प्रकार कम आनन्द एवं उल्लास का नहीं है। उसे ठीक तरह मनाया जाय तो अपना प्रसुप्त आनन्द और उल्लास जगेगा। इसी अवसर पर यदि थोड़ा अधिक गम्भीर आत्म-निरीक्षण कर लिया जाय और आगे के लिए कुछ ठोस सदुपयोग की बात सोच ली जाय तो वह दिन एक नये सूर्योदय जैसा प्रकाशवान् हो सकता है। बुद्ध, वाल्मीकि, सूरदास, तुलसी, शंकराचार्य, गांधी, रामदास, अंगुलिमाल आदि के पूर्व जीवन बहुत अच्छे न थे पर एक दिन उनकी अन्तःस्फुरणा जग पड़ी तो उनने अपनी दिशा ही बदल दी यह बदलना इतना महत्वपूर्ण हुआ कि वे नर से नारायण बन गये। जन्मदिन की उल्लास भरी घड़ी में यदि मनुष्य यत्किंचित भी आत्म-निर्माण की वात सोचने लगे तो वह उसी अनुपात में उसके सौभाग्य को घड़ी सिद्ध हो सकती है।

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