आचार्य श्रीराम शर्मा >> जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँ जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँश्रीराम शर्मा आचार्य
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जन्मदिवस को कैसे मनायें, आचार्यजी के अनुसार
पात्रता सिद्ध करें
ईश्वर ने मनुष्य शरीर देकर जीव के ऊपर असाधारण अनुकम्पा की है, अब उसका काम है कि इस सुविधा का स्वरूप समझे और उसका सदुपयोग कर सकने को अपनी पात्रता सिद्ध करे। यदि हमें जीवन प्राप्त है तो उसे जीने की कला भी आनी चाहिए। खेद इसी बात का है कि इस धरती पर तीन सौ करोड़ मनुष्य रहते हैं, पर उनमें से उसका सदुपयोग कर सकने वाले तीन करोड़ भी न होंगे। यही कमी है जिसने व्यक्ति और समाज की सुख- शान्ति का अपहरण
कर दुःख-दुर्भाग्य की विभीषिका खड़ी कर दी है।
व्यक्तित्वों के सुव्यवस्थित न होने के फलस्वरूप समाज में अगणित प्रकार की विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं और उनके फलस्वरूप विविध-विध उलझनें, समस्यामें, आपत्तियाँ एवं विभीषिकायें बढ़ती हैं। संसार के हर क्षेत्र में आज विषम परिस्थितियाँ प्रस्तुत हैं और इतनी भयानक उलझनें खड़ी हैं जो सुलझाने में नहीं आतीं। इसका एक मात्र कारण व्यक्तियों का सुसन्तुलित एवं सुविकसित न होना ही है। लोग न तो मानव-जीवन का महत्व एवं गौरव जानते हैं और न उसका सदुपयोग करने की कला से परिचित हैं यह कमी जब तक बनी रहेगी, तब तक व्यक्ति और समाज के सम्मुख उपस्थित वर्तमान कठिनाइयों में कमी होना दूर उलटे वे बढ़ती ही रहेंगी।
आज की सबसे बड़ी युग-आवश्यकता यह है कि मनुष्य को उसके स्वरूप एवं कर्तव्यों का बोध कराया जाय तथा जिन्दगी जीने की कला का वैज्ञानिक ढंग से प्रशिक्षण किया जाय। यही तत्वज्ञान अध्यात्म एवं धर्म के नाम से पुकारा जाता है। आज इस तत्वज्ञान ने भी विकृत रूप धारण कर लिया है और उसका क्षेत्र धर्मध्यजी वर्ग की आजीविका एवं प्रतिष्ठा बनाये रखना मात्र रह गया है। यह स्वरूप बदला जाना चाहिए। जनसाधारण को जिन्दगी जीने की कला के रूप में अध्यात्म तत्व-ज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए। इस आवश्यकता की जितने अंशों में पूर्ति हो सकेगी, उतनी ही व्यक्तिगत प्रगति, समृद्धि तथा समित्जक सुख-शान्ति का प्रयोजन पूर्ण होगा।
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