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आचार्य श्रीराम शर्मा >> महिला जाग्रति

महिला जाग्रति

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15500
आईएसबीएन :00000

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महिला जागरण की आवश्यकता और उसके उपाय

प्रजनन पर तो रोक लगे ही


इन दिनों यह आवश्यकता कई कारणों से कई गुनी बढ़ गई है। एक तो इसलिए कि बीसवीं सदी के अंतकाल में सूक्ष्मजगत सृजन और समापन के संदर्भ में अत्यंत उलझा रहेगा। उसके दुष्प्रभाव इन दिनों की उत्पत्ति पर पड़े बिना रह नहीं सकते। उसके कारण अनेक त्रास सहने की अपेक्षा यह कहीं अच्छा है कि इक्कीसवीं सदी के अंत तक प्रजनन रोका जाए और इक्कीसवीं सदी में अवतरित होने वाली दिव्य आत्माओं से अपनी वंश-परंपरा को धन्य होने का लाभ उसी प्रकार प्राप्त किया जाए जिस प्रकार कि तपस्वी अपनी संयम-साधना का प्रतिफल सिद्धियों और विभूतियों के रूप में प्राप्त करते रहे हैं।

दूसरा कारण यह है कि इन दिनों हर नर-नारी के लिए महाकाल का आमंत्रण और युगधर्म का निमंत्रण यह है कि नारी-पुनरुत्थान के लिए सर्वतोभावेन समर्पित हों और पीढ़ियों से चलते आ रहे अनाचार का प्रायश्चित्त करते हुए पूर्वजों की भूलों का परिमार्जन करें। देश, समाज को ऊँचा उठाने के लिए कोई समय ऐसा भी आता है, जिसकी कीमत सामान्य दिनों की तुलना में अनेक गुनी अधिक होती है। युद्धकाल में कई बार देश के हर समर्थ को सेना में अनिवार्यतः भरती किया जाता है। समझा जाना चाहिए कि ईश्वर के तत्त्वाधान में हर समर्थ के लिए आधी जनसंख्या को त्राण दिए जाने, उसको प्राचीन परंपरा में पुनः सुसज्जित करने की ठीक वेला यही है। उसमें लोभ-मोह की, विशेषतः काम-कौतुक की उपेक्षा की जा सके, तो हर किसी को अपने-अपने ढंग से थोड़ा-बहुत अच्छा करने का ऐसा आधार बन सकता है, जिसकी भूरि-भूरि प्रशंसा की जा सके और अपना समाज फिर विश्व का सर्वतोमुखी नेतृत्व कर सके। यह बुद्धकाल में उभरे परिव्राजकों-परिव्राजिकाओं के निकल पड़ने जैसा समय है। इसी आधार पर आधी दुनिया के कल्याण की श्रेय-साधना बन पड़ सकती है। तीसरी बात यह है कि संसार पर अणुयुद्ध, प्रदूषण व स्वार्थ-संघर्ष की ही तरह जनसंख्या-वृद्धि की विभीषिका भी सर्वनाशी घटनाओं की तरह छाई हुई है। यह संकट न टला तो समझना चाहिए कि विभिन्न क्षेत्रों में चल रहे प्रगति के उपायों में से एक भी सफल न हो सकेगा और विनाशकारी संभावनाओं का दौर दिन-प्रतिदिन अधिक भयावह होता चला जाएगा। कम-से-कम युगसंधि के इन दिनों में तो इस संदर्भ में विराम लग सके, तो संसार भर की संस्कृति को साँस लेने का अवसर मिल सकता है।

उपर्युक्त तथ्यों के अतिरिक्त एक और भी चौथी बड़ी बात है कि इन दिनों नारी-कल्याण, जिसे दूसरे शब्दों में विश्व-कल्याण कहा जा सकता है, उसके लिए अभीष्ट अवकाश मिल सकता है। यदि उठती आयु का उल्लास देश-रक्षा की सैन्य सेवा में लगाने की तरह नियोजित किया जा सके, तो समझना चाहिए कि नवसृजन की बहुमुखी संभावनाओं का द्वार खुल ही गया है।

हिमालय से भारत की प्रमुख नदियाँ निकलतीं और देश भर की जल की आवश्यकता की अधिकांश पूर्ति करती हैं। समझना चाहिए कि चेतना-क्षेत्र का हिमालय इन दिनों शांतिकुंज से सारे विश्व में अपने ढंग की बहुमुखी प्रक्रियाओं का सूत्र-संचालन कर रहा है। उन्हों में एक महान प्रयोजन है-नारी-जागरण। इसके लिए प्रचार-प्रसार की महान परिवर्तन प्रस्तुत करने वाली प्रक्रिया तो चल ही रही है। व्यावहारिक मार्गदर्शन के लिए एक-एक महीने के नौ-नौ दिन के प्रशिक्षण-सत्र भी चलते हैं। इनमें प्रवेश पाने वाले नए स्तर पर चेतना-प्रेरणा शक्ति लेकर लौटते हैं, साथ ही वह मार्गदर्शन भी प्राप्त करते रहते हैं, जिसके अनुसार अपनी स्थिति से तालमेल बैठाते हुए वह परामर्श-पथ अपनाया जा सके, जो स्वार्थदृष्टि से भी उतना ही आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है।

जिनके अंतरतम में इन दिनों नारी-उत्थान की सेवा-साधना और तपश्चर्या करने का मन हो, वे उपयुक्त दिशा पाने के लिए शांतिकुंज, हरिद्वार से संपर्क कर सकते हैं और निरंतर चलने वाले सत्रों में से किसी में प्रवेश पाने के लिए आवेदन कर सकते हैं। जिन्हें इसी युगसंधि-अवधि में विवाह-बंधन में बँधना आवश्यक हो गया हो, वे कम-से-कम इतना तो करें ही कि दहेज-जेवर और धूम-धाम से सर्वथा रहित संबंध करें। ऐसा सुयोग अपने यहाँ न बन पा रहा हो तो उसके लिए वे शांतिकुंज आकर विवाह कर लें, बिना किसी प्रकार का खरच किए विवाह संपन्न करा लें। जिनके बच्चे हैं उनसे यह प्रतिज्ञाएँ कराई जाएँ कि वे कम-से-कम अपने लड़कों की तो खरचीली शादियों करेंगे ही नहीं। नारी-उत्कर्ष के लिए यह आंदोलन भी अनिवार्य रूप से आवश्यक है।

युग की आवश्यकता और कार्य की महत्ता समझते हुए हर भावनाशील-प्रतिभावान को नारी-जागरण की दिशा में कुछ-न-कुछ ठोस प्रयास करने ही चाहिए।

 

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