आचार्य श्रीराम शर्मा >> शक्तिवान बनिए शक्तिवान बनिएश्रीराम शर्मा आचार्य
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जीवन में शक्ति की उपयोगिता को प्रकाशित करने हेतु
शक्ति संचय के सूत्र
शक्ति ही सुख की जननी है। बिना शक्ति के सुख संभव नहीं। अशक्त मनुष्य किसी न किसी प्रकार के दु:ख में निरन्तर डूबे रहते हैं। निर्बलता बहुत बड़ा पाप है, जिसके परिणामस्वरूप नाना भाँति के दुःख उठाने पड़ते हैं। इसलिए दुःख से बचने और सुख प्राप्त करने के लिए शक्ति संचय की आवश्यकता होती है।
ईश्वर प्राप्ति, जीवन साधना और परमार्थ की उपलब्धि के लिए भी बल की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी कि सांसारिक सफलताओं के लिए। शक्ति सम्प्रदाय तो एकमात्र शक्ति को ही ईश्वर मानता है। गीता में भगवान् ने अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए शक्तिशाली, बड़े उत्तम पदार्थों में ही अपनी स्थिति बताई है। मुक्ति और स्वर्ग भी पुरुषार्थ के बल के फल हैं। उपनिषदों में स्पष्ट कर दिया गया है कि 'नायमात्मा बल हीनेन लभ्यः।' अर्थात्- बलहीनों को आत्मा की प्राप्ति नहीं होती।
भौतिक और आत्मिक सुख-शान्ति के लिए, समृद्धि तथा स्वस्थता के लिए, जीवन देवता की साधना के लिए शक्ति की अनिवार्य आवश्यकता है। शक्ति संचय की महत्ता और आवश्यकता पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए, यहाँ चार अनिवार्य एवं प्रमुख सूत्र दिये जा रहे हैं। जीवन देवता की साधना करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह उपयोगी मंत्र हैं।
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