आचार्य श्रीराम शर्मा >> मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधान मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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इसमें मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म विधानों का वर्णन किया गया है.....
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यम तर्पण
यम नियन्त्रण-कर्ता शक्तियों को कहते हैं। जन्म-मरण की व्यवस्था करने वाली शक्ति को यम कहते हैं। मृत्यु को स्मरण रखें, मरने के समय पश्चात्ताप न करना पड़े, इसका ध्यान रखें और उसी प्रकार की अपनी गतिविधियाँ निर्धारित करें, तो समझना चाहिए कि यम को प्रसन्न करने वाला तर्पण किया जा रहा है। राज्य शासन को भी यम कहते हैं। अपने शासन को परिपुष्ट एवं स्वस्थ बनाने के लिये प्रत्येक नागरिक को, जो कर्तव्य पालन करना है, उसका स्मरण भी यम तर्पण द्वारा किया जाता है। अपने इन्द्रिय निग्रहकर्ता एवं कुमार्ग पर चलने से रोकने वाले विवेक को यम कहते हैं। इसे भी निरन्तर पुष्ट करते चलना हर भावनाशील व्यक्ति का कर्तव्य है। इन कर्तव्यों की स्मृति यम-तर्पण द्वारा की जाती है। दिव्य पितृ तर्पण की तरह पितृतीर्थ से तीन-तीन अंजलि जल यमों को भी दिया जाता है।
ॐ यमादिचतुर्दशदेवाः आगच्छन्तु गृह्णन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।
ॐ यमाय नमः॥३॥
ॐ धर्मराजाय नमः॥३॥
ॐ मृत्यवे नमः॥३॥
ॐ अन्तकाय नमः॥३॥
ॐ वैवस्वताय नमः॥३॥
ॐ कालाय नमः॥३॥
ॐ सर्वभूतक्षयाय नमः ॥३॥
ॐ औदुम्बराय नमः॥३॥
ॐ दध्नाय नमः॥३॥
ॐ नीलाय नमः॥३॥
ॐ परमेष्ठिने नमः॥३॥
ॐ वृकोदराय नमः॥३॥
ॐ चित्राय नम:॥३॥
ॐ चित्रगुप्ताय नमः॥३॥
तत्पश्चात् निम्न मन्त्रों से यम देवता को नमस्कार करें-
ॐ यमाय धर्मराजाय, मृत्यवे चान्तकाय च।
वैवस्वताय कालाय, सर्वभतक्षयाय च॥
औदुम्बराय दध्नाय, नीलाय परमेष्ठिने।
वृकोदराय चित्राय, चित्रगुप्ताय वै नमः॥
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- ॥ मरणोत्तर-श्राद्ध संस्कार ॥
- क्रम व्यवस्था
- पितृ - आवाहन-पूजन
- देव तर्पण
- ऋषि तर्पण
- दिव्य-मनुष्य तर्पण
- दिव्य-पितृ-तर्पण
- यम तर्पण
- मनुष्य-पितृ तर्पण
- पंच यज्ञ