आचार्य श्रीराम शर्मा >> समयदान ही युगधर्म समयदान ही युगधर्मश्रीराम शर्मा आचार्य
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प्रतिभादान-समयदान से ही संभव है
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समय का एक बड़ा अंश, नवसृजन में लगे
अति महत्त्वपूर्ण सामर्थ्यों की इस दुनिया में कमी नहीं, पर विधि की कुछ ऐसी विडंबना है कि, वे प्रायः प्रसुप्त स्थिति में उनींदी पड़ी रहती हैं। प्राणि समुदाय का निर्वाह क्रम किसी प्रकार चलता रहे, क्षमताओं का उतना ही पक्ष क्रियाशील रहता है। यदि विशेष उद्देश्य को क्रियान्वित करना हो, तो उसके लिए विशिष्टजनों को विशेष प्रयत्न करने पड़ते हैं।
समुद्र में विपुल संपदा अनादि काल से छिपी पड़ी थी। उसका किसी को पता तक न था; पर जब प्रजापति के परामर्श से देव-दानवों ने मिल-जुलकर प्रयत्न-पुरुषार्थ किया, तो वे चौदह रत्न निकले जिनके कारण धरती से लेकर स्वर्गलोक तक में चमत्कारी संपदाओं का बाहुल्य उभर पड़ा। शास्त्र कहते हैं कि "मनुष्य से बढ़कर इस संसार में और कुछ नहीं है।" दार्शनिकों ने उसकी विचित्र स्थिति को देखते हुए कहा है कि-"वह भटका हुआ देवता है।" यदि उसे सही राह पर चलाने के लिए कोई कुशल महावत मिल जाए, तो वह अपनी असाधारण ऊँचाई और समर्थता से हर किसी को चमत्कृत कर सकता है।
अवांछनीयता की जकड़न और प्रगति की तड़पन अनुभव तो सभी करते हैं, पर गाड़ी यहीं अड़ जाती हैं कि दैवी गरिमा की प्रतीक-प्रतिनिधि मानवी क्षमता को जगाने के लिए तैयारियाँ कहीं होती नहीं दिखतीं। यदि नारद जैसे कुछ ही लोग जागृति गान गाने में निरत रहे होते, तो मानवी पराक्रम और दैवी अनुग्रह का सुयोग सहज ही बन जाता और परिवर्तन भरा ऐसा वातावरण उद्भूत होता, जिसे युग परिवर्तन जैसा काया कल्प कहा जाता।
गरम किये जाने पर मलाई तैरकर ऊपर आ जाती है। महाकाल की हुँकार सुन सकने में जिनके कान समर्थ हैं, वे इन दिनों कुछ करने के बिना रह ही नहीं सकते। बिगुल बजते ही सैनिक तंबू को छोड़कर मैदान में पंक्तिबद्ध आ खड़े होते हैं। आदेश जब तक मिले, उसके पहले ही वे वर्दी पहनने और पेटी कसने का काम पूरा कर लेते हैं।
आज का युग धर्म है-जन-जागरण के लिए प्रचंड पुरुषार्थ में जूट पड़ना। यही होने भी जा रहा है। प्रतिभाएँ अग्रिम मोर्चे पर . एकत्रित हो रही है और व्यापक जन-जागरण की क्रमबद्ध सुव्यवस्थित योजना बना रही है। चिंतन आगे भी इसी विकृत स्थिति में नहीं रहेगा, उसे अपनी उलटी दिशा छोड़कर उस दिशाधारा को अपनाना पड़ेगा जो सही एवं श्रेयस्कर है।
विचार परिवर्तन यदि 'ब्रेन वाशिंग' स्तर का करना हो और उसकी परिधि संसार भर में बसने वाले लगभग ६०० करोड़ व्यक्तियों तक सुविस्तृत करनी हो, तो उसके लिए बड़े कदम उठाने होंगे और उस कार्य में रीछ-वानरों की तरह, हर छोटे-बडे का अपने-अपने ढंग का योगदान होगा। विचार परिष्कार के लिए लेखनी और वाणी के दृश्य और श्रव्य स्तर के सभी माध्यमों का उपयोग होगा। इस संदर्भ में युग-साहित्य से जन-जन को अवगत कराने की आवश्यकता पड़ेगी। कार्ल माक्र्स, रूसो हेरियट स्टो जैसों की क्रांतिकारी लेखनी का चमत्कार और परिणाम अनेकों ने पिछले दिनों प्रत्यक्ष देखा ही है।
युग साहित्य को झोला पुस्तकालयों और ज्ञान रथों के माध्यम से घर बैठे बिना शुल्क हर शिक्षित तक पहुँचाने का प्रयत्न किया जा रहा है। साथ ही यह अनुबंध भी जोड़कर रखा गया है कि बिना पदों को उसे सुनाते रहा जाए। यह कार्य प्रधान रूप में अभी हिंदी भाषी क्षेत्रों में संपन्न हुआ है। अगले ही दिनों उसे देश की विश्व की समस्त भाषाओं में समुद्री ज्वार-भाटे की तरह फैलते और कुहराम मचाते देखा जाएगा।
श्रव्य प्रयोजनों के लिए बिना खर्च वाले दीप यज्ञों की इतनी विशाल योजना चल पड़ी है, कि गाँव-गाँव इस माध्यम से युग चेतना का आलोक वितरण का सिलसिला द्रुतगति से चलता रहेगा। विचारशील वर्ग की अतिरिक्त गोष्ठियों का क्रम भी चल पड़ा है। जिसके आधार पर समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी को जीवन में उतारकर दिखाने के लिए हर जागृत आत्मा के प्राण हुलसने लगे। टेप रिकार्डर के माध्यम से उद्बोधनों और संगीतों को घर-घर पहुँचने की योजना बन रही है। अभिनय भरे संगीत के आयोजन की सरल माध्यम नए रूप में अपनाया गया है। बन पड़ा तो इसके लिए वीडियो आदि का प्रभावशाली उपक्रम भी अपनाया जाएगा।
सूर्य पूर्व से उदय होता है। इतिहास साक्षी है कि भारत ने भी समय-समय पर विश्व का प्रगतिशील मार्गदर्शन किया है। इस बार भी बारी उसी की है। न केवल भारतवासी नवयुग की विचारधारा से अनुप्राणित होंगे, वरन् भाषायी समस्या के अनुरूप यदि प्रबंध बन पड़ा तो संसार भर की प्रतिभाओं को आगे आना होगा एवं सर्वतोमुखी परिवर्तन के लिए अपने-अपने ढंग से अपना-अपना योगदान करते देखा जा सकेगा।
प्रचार-प्रक्रिया के साथ लोक सेवा का गहरा पूट लगा होना आवश्यक है। ईसाई मिशन इसी रीति-नीति को अपनाकर प्रायः एक सहस्राब्दी में कम से कम आधी दुनिया को अपना मतावलंबी बना चुके हैं। युग निर्माण की जन-जागरण योजना के दो विधेयात्मक और दो निषेधात्मक कार्यक्रम प्राथमिकता के स्तर पर हाथ में लिए गए हैं। जिनमें से एक हैं—हर शिक्षित द्वारा न्यूनतम दो अशिक्षितों को शिक्षित बनाया जाए। इससे कम में देश की निरक्षरता का समाधान हो नहीं सकेगा। इसी उपक्रम के अंतर्गत पुस्तकालय योजना भी जुडी हुई है, ताकि हर प्रकार की वर्तमान समस्याओं का स्वरूप और समाधान जानने का अवसर मिल सके। विद्यालय और पुस्तकालय मिलकर ही एक समग्र शिक्षण-प्रक्रिया विनिर्मित होती है।
दूसरा है नारी जागरण। यह आधी जनता को अवगति के गर्त में से निकालकर समर्थता के सिंहासन पर बिठाने जैसे क्रांतिकारी कदम है। इक्कीसवीं सदी नारी प्रधान होगी। उसकी भूमिका हर क्षेत्र में नर से कहीं अधिक बढ़-चढ़कर होगी। अतएव प्रयत्न यह होना चाहिए कि उसे शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन और तेजस्विता की दृष्टि से उपयुक्त स्तर तक पहुँचाया जाए। इसके लिए उसे दो सुविधाएँ देनी होंगी-एक गृहकार्यों में चौबीसों घंटे व्यस्त रहने के बंधनों से थोड़ा अवकाश देना, जिससे वह प्रगति के हेतु कुछ कर सकने की सुविधा प्राप्त कर सके। दूसरा यह कि उस पर प्रजनन का भार कम से कम दिया जाए, इससे जहाँ जनसंख्या की वृद्धि पर अंकुश लगेगा, वहाँ वे महिलाएँ अधिक योग्यता संपादन का अवसर भी प्राप्त कर सकेंगी।
यही दोनों कार्य विधेयात्मक योजनाओं में से अपनी-अपनी स्थिति के अनुरूप हाथ में लेने चाहिए और इन उपायों के लिए भी युग चेतना विस्तार की तरह ही रुचिपूर्वक समयदान देना चाहिए।
जिस प्रकार सृजनात्मक पुण्य प्रयोजन अनेकों हैं, उसी प्रकार दुष्प्रवृत्ति उन्मूलन के क्षेत्र में असंख्यों कार्य करने को पड़े हैं। इनमें से परिजन दो को प्रमुखता दें-एक नशा-निवारण दूसरा विवाहों में होने वाला अपव्यय। समाज को दिन-दिन दुर्बल-दरिद्र बनाने वाले यही दो प्रमुख कारण हैं। नशा न पीने, न पीने देने के लिए प्रतिज्ञा की जाएँ। उसकी हानियों से जन-जन को अवगत कराया जाए और छुड़ाने के लिए जो भी उपाय अपनाया जा सकता है, उसे कार्यान्वित किया जाए। ठीक इसी प्रकार यह तथ्य भी हर किसी को समझाया जाए कि खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती हैं। दहेज, जेवर धूमधाम और अनावश्यक बारात का प्रचलन रुके तो ही समझना चाहिए कि मानवी आचार-संहिता का महत्त्वपूर्ण अंग-विवाह संहिता का आधार बन पड़ा।
गाँधी जी ने खादी आंदोलन और नमक सत्याग्रह के दो उपक्रम हाथ से लेकर अपना महान सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया, जो अंततः अनेक धाराओं में विकसित हुआ और राष्ट्र को मानव जीवन प्रदान कराने में समर्थ हुआ। युग निर्माण योजना ने प्रचार-प्रक्रिया के अतिरिक्त निरक्षरता उन्मूलन और शादियों को बिना खर्च की बनाने का कार्य हाथ में लिया है। ऐसी शादियाँ शातिकुंज में आकर लोग हजारों की संख्या में करा चुके हैं।
ऊपर कुछ थोड़े-से कार्यक्रमों का उल्लेख है। इसे शुभारंभ की बेला में जुटाया गया थोड़ा सरंजाम ही समझा जा सकता है। अगले दिनों तो सर्वतोमुखी सृजन परिवर्तन के लिए अनेकों काम हाथ में लेने होंगे और ध्यान रखना होगा कि गिराने में जितनी शक्ति लगी है, उसकी तुलना में बनाने में कहीं अधिक कौशल, समय, श्रम और साधन चाहिए।
यह साधन कहीं आसमान से नहीं टूटेंगे। युग चेतना से अनुप्राणित प्रतिभाओं को अपने आप से इस समयदान का शुभारंभ करना होगा, जिसके सहारे जहाँ भी आवश्यकता हो वहाँ उसका उपयोग हो सके। महाकाल ने समयदान की एक मात्र याचना की है। और हर प्रतिभावान से आशा की है कि वह इस आड़े समय में इस हेतु कृपणता न बरतेगा, वरन् ऐसी उदारता का परिचय देगा जिसे अनुकरणीय और अभिनंदनीय कहा जा सके। विश्वास किया जाना चाहिए कि इस मिशन का हर घटक इस संदर्भ में साहसिकता अपनाएगा और अगले कदम क्या उठे, इसके लिए शांतिकुंज के साथ विचार-विनिमय या पत्राचार आरंभ करेगा।
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- दान और उसका औचित्य
- अवसर प्रमाद बरतने का है नहीं
- अभूतपूर्व अवसर जिसे चूका न जाए
- समयदान-महादान
- दृष्टिकोण बदले तो परिवर्तन में देर न लगे
- प्रभावोत्पादक समर्थता
- प्रामाणिकता और प्रखरता ही सर्वत्र अभीष्ट
- समय का एक बड़ा अंश, नवसृजन में लगे
- प्राणवान प्रतिभाएँ यह करेंगी
- अग्रदूत बनें, अवसर न चूकें