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आचार्य श्रीराम शर्मा >> विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :24
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15535
आईएसबीएन :0

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विवाह दिवसोत्सव कैसे मनाएँ

Vivah Divasotsav Kaise Manaen - a guide for marital life by Sriram Sharma Acharya


एकाकी मनुष्य अपूर्ण है। पति-पत्नी दोनों के सम्बन्ध से एक पूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण होता हं। स्त्री और पुरुष की अपनी-अपनी कुछ ऐसी विशेषतायें है जो दूसरे में नहीं। इन दोनों के समन्वय से वे अभाव दूर होते है जिनके कारण मानसिक शान्ति और सांसारिक सुख-सुविधाओं का द्वार रुका पड़ा रहता है। गाड़ी के दो पहियों की तरह मानव-जीवन पति-पत्नी के दो आधारों पर चलता है। दो आँख? दो कान, दो हाथ, दो पैर की तरह मनुष्य जीवन भी दो अंगों में विभक्त है। दोनों से मिलकर शरीर शोभा पाता है अन्यथा एकाकीपन काने, लँगड़े, लूले, बूचे व्यक्ति की तरह कुरुप एवं अव्यवस्थित बनकर रह जाता है। उसमें एक अभाव का, एक कसक का निरन्तर अनुभव होता रहता है।

योगी, ज्ञानी, परमार्थी महामानव अपनी सांसारिक आवश्यकताओं एवं इच्छाओं कों समाप्त कर ज्ञान, परमार्थ एवं ब्रह्म चिन्तन के उस उच्चस्तर पर जा पहुँचते है जहाँ जीवन की लौकिक सुव्यवस्था की आवश्यकता ही प्रतीत नहीं होती। उनके लिए अविवाहित रहना उपयुक्त हो सकता है। किन्तु जिन्हें स्वाभाविक एवं सरल जीवन जीना है उनके लिए जोड़े से रहने में जो सुविधा है वह और किसी प्रकार नहीं। अपवाद सब में होते हैं जो एकाकी जीवन बिना किसी क्षोभ या अभाव का अनुभव किये जी सकते है वे सराहनीय है। पर उन्हें कहा अपवाद ही जायगा। साधरणतया हर मनुष्य को अपने समय पर गृहस्थ बनकर रहने की ही आवश्यकता पड़ती है। उसी में सुविधा भी हैं।

विषय-क्रम

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    अनुक्रम

  1. विवाह प्रगति में सहायक
  2. नये समाज का नया निर्माण
  3. विकृतियों का समाधान
  4. क्षोभ को उल्लास में बदलें
  5. विवाह संस्कार की महत्ता
  6. मंगल पर्व की जयन्ती
  7. परम्परा प्रचलन
  8. संकोच अनावश्यक
  9. संगठित प्रयास की आवश्यकता
  10. पाँच विशेष कृत्य
  11. ग्रन्थि बन्धन
  12. पाणिग्रहण
  13. सप्तपदी
  14. सुमंगली
  15. व्रत धारण की आवश्यकता
  16. यह तथ्य ध्यान में रखें
  17. नया उल्लास, नया आरम्भ

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