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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य कुंजी

आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख

आरोग्य कुंजी

प्रस्तावना


'आरोग्यके विषयमें सामान्य ज्ञान' शीर्षकसे 'इण्डियन ओपीनियन' के पाठकों के लिए मैंने कुछ प्रकरण १९०६ के आसपास दक्षिण अफ्रिका में लिखे थे। बाद में वे पुस्तक के रूप में प्रकट हुए। हिन्दुस्तान में यह पुस्तक मुश्किल से ही कहीं मिल सकती थी। जब मैं हिन्दुस्तान वापस आया उस वक्त इस पुस्तक की बहुत माँग हुई। यहाँ तक कि स्वामी अखण्डानन्दजीने उसकी नई आवृत्ति निकालने की इजाजत माँगी और दूसरे लोगों ने भी उसे छपवाया। इस पुस्तक का अनुवाद हिन्दुस्तान की अनेक भाषाओं में हुआ और अंग्रेजी अनुवाद भी प्रकट हुआ। यह अनुवाद पश्चिम में पहुँचा और उसका अनुवाद युरोप की भाषाओं में हुआ। परिणाम यह आया कि पश्चिममें या पूर्व में मेरी और कोई पुस्तक इतनी लोकप्रिय नहीं हुई, जितनी कि यह पुस्तक हुई। इसका कारण मैं आज तक समझ नहीं सका। मैंने तो ये प्रकरण सहज ही लिख डाले थे। मेरी निगाहमें उनकी कोई खास क़दर नहीं थी। इतना अनुमान मैं जरूर करता हूँ कि मैंने मनुष्य के आरोग्य को कुछ नये ही स्वरूपमें देखा है और इसलिए उसकी रक्षाके साधन भी सामान्य वैद्यों और डॉक्टरोंकी अपेक्षा कुछ अलग ढंग से बताये हैं। उस पुस्तक की लोकप्रियताका यह कारण हो सकता है।

मेरा यह अनुमान ठीक हो या नहीं, मगर उस पुस्तककी नई आवृत्ति निकालनेकी माँग बहुतसे मित्रोंने की है। मूल पुस्तकमें मैंने जिन विचारोंको रखा है उनमें कोई परिवर्तन हुआ है या नहीं, यह जाननेकी उत्सुकता बहुतसे मित्रोंने बताई है। आज तक इस इच्छाकी पूर्ति करनेका मुझे कभी वक्त ही नहीं मिला। परन्तु आज ऐसा अवसर आ गया है। उसका फ़ायदा उठा कर मैं यह पुस्तक नये सिरेसे लिख रहा हूँ। मूल पुस्तक तो मेरे पास नहीं है। इतने वर्षोंके अनुभवका असर मेरे विचारों पर पड़े नहीं रह सकता। मगर जिन्होंने मूल पुस्तक पढ़ी होगी, वे देखेंगे कि मेरे आजके और १९०६ के विचारों में कोई मौलिक परिवर्तन नहीं हुआ है।

इस पुस्तकको नया नाम दिया है 'आरोग्यकी कुंजी'। मैं यह उम्मीद दिला सकता हूँ कि इस पुस्तक को विचारपूर्वक पढ़नेवालों और इसमें दिये हुए नियमों पर अमल करनेवालोंको आरोग्यकी कुंजी मिल जायगी और उन्हें डॉक्टरों और वैद्योंका दरवाज़ा नहीं खटखटाना पड़ेगा।

मो० क० गांधी
आगाखां महल,
यरवडा,
२७-८-'४२


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