स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
६. चाय, काँफी और कोको
इन तीनोंमें से एककी भी शरीरको आवश्यकता नहीं है। चायका प्रचार चीनसे हुआ कहा जाता है। चीनमें उसका खास उपयोग है। वहाँ पानी अकसर शुद्ध नहीं होता। पानीको उबाल कर पिया जाय तो पानीका विकार दूर किया जा सकता है। किसी चतुर चीनीने चाय नामकी एक घास ढूंढ़ निकाली। वह घास बहुत थोड़ी मात्रामें भी उबलते पानीमें डाली जाय, तो पानीका रंग सुनहरा हो जाता है। अगर इस तरह पानी सुनहरा रंग पकड ले, तो यह इस बातकी पक्की निशानी है कि पानी उबल चुका है। सुना है कि चीनमें लोग इसी तरह पानीकी परीक्षा करते हैं और वही पानी पीते हैं। चायकी दूसरी विशेषता यह है कि उसमें एक तरहकी खुशबू रहती है। ऊपर लिखे तरीकेसे बनी दुई चायको निर्दोष मान सकते हैं ऐसी चाय बनानेका यह तरीका है : एक चम्मच चाय छलनी में डाली जाय। छलनीको चायके बर्तन पर रखा जाय। छलनी पर धीरे-धीरे उबला हुआ पानी डाला जाय। नीचे जो पानी आये उसका रंग सुनहरा हो, तो समझ लें कि पानी ठीक उबल चुका है।
जैसी चाय सामान्यतः पी जाती है, उसका कोई गुण तो जाननेमें नहीं आया। मगर उसमें एक भारी दोष होता है। अर्थात् उसमें टेनीन होता है। टेनीन ऐसी चीज़ है, जो चमड़ेको पकानेके काम में आती है। यही काम टेनीनवाली चाय आमाशय (Stomach) में जाकर करती है। आमाशयके भीतर टेनीनकी तह चढ़नेसे उसकी पाचन-शक्ति कम होती है। इससे अपच होता है। कहा जाता है कि इंग्लैण्डमें तो असंख्य औरतें केवल कड़क चायकी आदतके कारण अनेक रोगोंकी शिकार बनती है। जिन्हें चायकी आदत है, उन्हें समय पर चाय न मिले, तो वे व्याकुल हो जाते हें। चायका पानी गरम होता है। उसमें थोड़ी चीनी और थोड़ासा दूध डाला जाता है। यह चायका गुण जरूर माना जा सकता है। मगर दूधमें पानी डालकर उसे गरम किया जाये और उसमें चीनी या गुड डाला जाय, तो उससे वही काम अच्छी तरह निकलता है। उबलते पानीमें एक चम्मच शहद और आधा चम्मच नीबूका रस डाला जाय, तो सुन्दर पेय बन जाता है।
जो चाय के विषय में कहा गया है, वह काँफीको भी थोड़े-बहुत प्रमाणमें लागू होना है। काँफीके बारेमें कहावत है :
कफकाटन वायुहरण, धातुहीन बलक्षीण;
लोहूका पानी करे, दो गुण अवगुण तीन।
जो राय मैंने चाय और काँफीके बारेमें दी है, वही कोकोके बारेमें भी है। जिसकी पाचन-क्रिया नियमित है, उसे चाय, काँफी और कोकोकी मददकी आवश्यकता नहीं रहती। अपने लंबे अनुभव पर से मैं यह कह सकता हूँ कि तन्दुरुस्त मनुष्य को सामान्य खुराकसे पूरा संतोष मिल जाता है। मैंने उपर्युक्त तीनों चीजोंका खूब सेवन किया है। जब मैं ये चीज़ें लेता था, तब शरीरमें कुछ न कुछ बिगाड़ रहा ही करता था। इन चीजों त्यागसे मैंने कुछ भी खोया नहीं है, उलटा बहुत पाया है। जो स्वाद मुझे चाय इत्यादिमें मिलता था, उससे कहीं अधिक स्वाद अब मैं उबली हुई सामान्य भाजियोंके रसमें पाता हूं।
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