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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य कुंजी

आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


कृत्रिम उपाय : अब कृत्रिम उपायोंके विषयमें कुछ कह दूँ। विषय-भोग करने हुए भी कृत्रिम उपायोंके द्वारा प्रजोत्पत्ति रोकनेकी प्रथा पुरानी है। मगर पूर्वकालमें वह गुप्त रूपमें चलती थी। आधुनिक सभ्यताके इस जमानेमें उसे ऊंचा स्थान मिला है और कृत्रिम उपायोंकी रचना भी व्यवस्थित तरीक़ेसे की गयी है। इस प्रथाको परमार्थका जामा पहनाया गया है। इन उपायोंके हिमायती कहते हैं कि भोगेच्छा तो स्वाभाविक वस्तु है, शायद उसे ईश्वरका वरदान भी कहा जा सकता है। उसे निकाल फेंकना अशक्य हे। उस पर संयमका अंकुश रखना कठिन है। और अगर संयमके सिवा दूसरा कोई उपाय न ढूंढ़ा जाय, तो असंख्य स्त्रियोंके लिए प्रजोत्पत्ति बोझरूप हो जायगी; और भोगसे उत्पन्न होनेवाली प्रजा इतनी बढ़ जायगी कि मनुष्य-जातिके लिए पूरी खुराक ही नहीं मिल सकेगी।

इन दो आपत्तियोंको रोकनेके लिए कृत्रिम उपायोंकी योजना करना मनुष्यका धर्म हो जाता है। किन्तु मुझ पर इस दलीलका असर नहीं हुआ हे, क्योंकि इन उपायोंके द्वारा मनुष्य अनेक दूसरी मुसीबतें मोल ले लेता है। मगर सबसे बड़ा नुकसान तो यह है कि कृत्रिम उपायोंके प्रचारसे वे संयम-धर्मका लोप हो जानेका भय पैदा होगा। इस रत्नको बेचकर चाहे जैसा तात्कालिक लाभ मिले, तो भी यह सौदा करने योग्य नहीं है। मगर यहां मैं दलीलमें नहीं उतरना चाहता। जिज्ञासुको मेरी सलाह है कि वह 'अनीतिकी राह पर'* नामक मेरी पुस्तक पढ़ें और उसका मनन करें। बादमें जैसा उसका हृदय और बुद्धि कहे वैसा करें। जिन्हें यह पुस्तक पढ़नेकी इच्छा या अवकाश न हो, वे छूकर भी कृत्रिम उपायोंके नजदीक न फटके। वे विषय-भोगका त्याग करनेका भगीरथ प्रयत्न करें और निर्दोष आनन्दके अनेक क्षेत्रोंमें से थोड़े पसन्द कर लें। ऐसी प्रवृत्तियां ढूंढ़ लें जिनसे सच्चा दंपती-प्रेम शुद्ध मार्ग पर लग जाय, दोंनोंकी उन्नति हो और विषय-वासनाके सेवनका अवकाश ही न मिले। शुद्ध त्यागका थोडा अभ्यास करनेके बाद इस त्यागके भीतर जो रस भरा पड़ा है, वह उन्हें विषय-भोगकी ओर जाने ही नहीं को। कठिनाई आत्म-वंचनासे पैदा होती है। इसमें त्यागका आरम्भ विचार-शुद्धिसे नहीं होता, केवल बाह्याचारको रोकनेके निष्फल प्रयत्नसे होता है। विचारकी दृढताके साथ आचारका संयम शुरू हो, तो सफलता मिले बिना रह ही नहीं सकती। स्त्री-पुरुषकी जोड़ी विषय-सेवनके लिए हरगिज़ नहीं बनी है।

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