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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य कुंजी

आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


४. जैसा आहार वैसा ही आकार। जो मनुष्य अत्याहारी है, जो मनुष्य आहारमें कोई विवेक या मर्यादा ही नहीं रखता, वह अपने विकारोंका गुलाम है। जो स्वादको नहीं जीत सकता, वह कभी भी जितेन्द्रिय नहीं हो सकता। इसलिए मनुष्यको युक्ताहारी और अल्पाहारी बनना चाहिये। शरीर आहारके लिए नहीं, आहार शरीरके लिए है। शरीर अपने-आपको पहचाननेके लिए हमें मिला है। अपने-आपको पहचानना अर्थात् ईश्वरको पहचानना। इस पहचानको जिसने अपना परम विषय बनाया है, वह विकारवश नहीं होगा।

५. प्रत्येक स्त्रीको माता, बहन या पुत्रीकी तरह देखना चाहिये। कोई पुरुष अपनी मां, बहन या पुत्रीको-कभी विकारी दृष्टिसे नहीं देखेगा। स्त्री प्रत्येक पुरुषको अपने पिता, भाई या पुत्रकी तरह देखे।

इन पांच नियमोंमें सब नियमोंका समावेश हो जाता है। अपने दूसरे लेखोंमें मैंने इससे अधिक नियम दिये हैं। मगर उन सबका समावेश इन पांचमें हो जाता है। इन नियमोंका पालन करनेवालेके लिए महान विकारको जीतना बहुत सरल हो जाना चाहिए। जिसे ब्रह्मचर्य-व्रतके पालनकी लगन लगी है, वह ऐसा मानकर कि यह तो असंभव बात है या यह मानकर कि इसका पालन करोड़ोंमें कोई बिरले ही कर सकते हैं, अपना प्रयत्न नहीं छोड़ेगा। जो रस ब्रह्मचर्यक पालनमें हे, वह दूसरी किसी चीज़में नहीं है। दूसरी तरह कहूं तो जो आनन्द सच्चे आरोग्यमें है, वह दूसरी किसी चीज़में नहीं है। और जो मनुष्य विकारका गुलाम है, उसका शरीर सर्वथा निरोग नहीं रह सकता।

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