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स्वास्थ्य-चिकित्सा >> आरोग्य कुंजी

आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


अब जरा युक्ताहारके बारेमें विचार करें। मनुष्य-शरीरको स्नायु बनानेवाले, गर्मी देनेवाले, चर्बी बढ़ानेवाले, क्षार देनेवाले और मल निकालनेवाले द्रव्योंकी आवश्यकता रहती है। स्नायु बनानेवाले द्रव्य दूध, मांस, दालों और सूखे मेवोंसे मिलते हैं। दूध और मांससे मिलनेवाले द्रव्य दालों वगैराकी अपेक्षा अधिक आसानीसे पच जाते हैं और सर्वांशमें वे अधिक लाभदायक हैं। दूध और मांसमें दूध का दर्जा ऊपर है। डॉक्टर लोग कहते हैं कि जब मांस नहीं पचता, तब भी दूध पच जाता है। जो लौग मांस नहीं खाते, उन्हें तो दूधसे बहुत बड़ी मदद मिलती है। पाचनकी दृष्टिसे कच्चे अंडे सबसे अच्छे माने जाते है।

मगर दूध या अंडे सब कहांसे पायें? सब जगह ये मिलते भी नहीं। दूधके बारेमें एक बहुत ज़रूरी बात यहीं मैं कह दूं। मक्खन निकाला हुआ दूध निकम्मा नहीं होता। वह अत्यन्त क़ीमती पदार्थ है। कभी-कभी तो वह मक्खनवाले दूधसे भी अधिक उपयोगी होता है। दूधका मुख्य गुण स्नायु बनानेवाले प्राणिज पदार्थकी आवश्यकता पूरी करना है। मक्खन निकाल लेने पर भी उसका यह गुण कायम रहता है। इसके अलावा सबका सब मक्खन दूधमें से निकाल सके, ऐसा यन्त्र तो अभी तक बना ही नहीं है; और बननेकी संभावना भी कम ही है।

पूर्ण या अपूर्ण दूधके सिवा दूसरे पदार्थोंकी शरीरको आवश्यकता रहती है। दूध से दूसरे दर्जे पर गेहूं बाजरा जुआर, चावल वगैरा अनाज रखे जा सकते हैं। हिन्दुस्तानके अलग अलग प्रान्तोंमें अलग अलग किस्मके अनाज पाये जाते हैं। कई जगहों पर केवल स्वादके खातिर एक ही गुणवाले एकसे अधिक अनाज खाये जाते हैं। जैसे कि गेहूं बाजरा और चावल तीनों चीजें थोड़ी थोड़ी मात्रामें एक साथ खायी जाती है। शरीरके पोषणके लिए इस मिश्रणकी आवश्यकता नहीं है। इससे खुराककी मात्रा पर अंकुश नहीं रहता और आमाशयका काम अधिक बढ़ जाता है। एक समयमें एक ही तरहका अनाज खाना ठीक माना जायगा। इन अनाजोंमें से मुख्यतः स्टार्च (निशास्ता) मिलता है। गेहूं सब अनाजोंका राजा है। दुनिया पर नजर डालें तो गेहूं सबसे ज्यादा खाया जाता है। आरोग्यकी दृष्टिसे गेहूं मिले तो चावल अनावश्यक है। जहां गेहूं न मिले और बाजरा, जुआर इत्यादि अच्छे न लगें या अनुकूल न आयें, वहां चावल लेना चाहिये।

४-९-'४२

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