ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''कहीं ऐसा तो नहीं है शैतान कि बिहारीसिंह को किसी ढंग से पिशाचनाथ ने...?''
''मैं भी काफी देर से यही सोच रहा हूं। शैतानसिंह बोला- ''ऐसा हो सकता है कि उसने बिहारीसिंह को गिरफ्तार कर लिया हो और अब वह उसके जरिए मुझे किसी तरह से दबाना चाहता हो। लेकिन मैं उसकी इस तरह की किसी भी चाल में आने वाला नहीं।'' एक आवाज के साथ उस कमरे की खुली खिड़की से एक ढेला आकर कमरे में गिरा। कमरे की जमीन पर वह एक सायत तक लुढ़कता रहा और फिर एक जगह रुक गया। कमरे की छत में लटकी शानदार कन्दील की रोशनी में यह ढेला बहुत ही अजीब-सा लग रहा था। शैतानसिंह ने एक नजर बेगम बेनजूर की ओर देखा तथा आगे बढ़कर उस ढेले को उठा लिया। ढेले पर एक कागज लिपटा हुआ था। ढेले से अलग करके उस कागज को पढ़ा गया। लिखा था-
पिताजी, चरणस्पर्श,
यह खत मैं यानी बिहारीसिंह लिख रहा हूं। जिस वक्त आपने मुझे पन्द्रह सिपाहियों के साथ पिशाच के घर भेजा था, उस वक्त उन सभी बातों को पिशाचनाथ सुन रहा था। रास्ते में ही पिशाचनाथ ने मुझे गिरफ्तार कर लिया। इस वक्त मैं नहीं जानता कि कौन-सी जगह कैद हूं लेकिन इतना जानता हूं कि यह पिशाचनाथ के कब्जे की कोई जगह है। यह खत भी मुझे मजबूर करके पिशाच ही लिखवा रहा है। पिशाच का कहना है कि यह मुझे इस कैद से तभी आजाद करेगा, जब आप पहले. जमना को अपनी कैद से आजाद करेंगे। वर्ना.. यह मेरा वही करेगा, जो आप जमना का करेंगे।
आपका पुत्र - बिहारीसिंह।
शैतानसिंह ने उस कागज को पलटा तो दूसरी तरफ इस तरह का मजमून था-
प्यारे शैतानसिंह,
तुमने अपने लड़के का खत पढ़ लिया होगा और उसकी लिखाई भी अच्छी तरह पहचान ली होगी। अब जमना के साथ कोई भी सुलूक करने से पहले यह अच्छी तरह सोच लेना कि उसका मुआवजा बिहारीसिंह को भुगतना होगा। मैं जान चुका हूं कि तुमने बिहारीसिंह को जमना के पीछे इसलिए लगाया कि वह जमना को अपने प्रेमजाल में फंसा ले... दो बार तुमने रामकली का अपहरण करके नसीमबानो को रामकली बनाया। मैं तुम्हारी सभी साजिशों से अच्छी तरह वाकिफ हो चुका हूं अब मैं ये भी जान गया हूं कि यह सारी कार्यवाही तुम रक्तकथा के लिए कर रहे थे। अगर रक्तकथा के बारे में तुम मुझसे किसी तरह की बातचीत करना चाहते हो तो इसी वक्त मुझसे सोनिया के खण्डहर में मिलो। ध्यान रहे... इस बारे में किसी दूसरे को बताने अथवा किसी दूसरे की मदद के साथ सोनिया के खण्डहर में मत पहुंचना, क्योंकि हर वक्त मेरी नजरें तुम पर टिकी हैं और ऐसी हालत में तुम्हारी मुलाकात मुझसे नहीं हो सकेगी। मैं ऐयार हूं और ऐयार अपने उस्ताद की झूठी कसम नहीं खाता। मैं उस्ताद की कसम खाकर कहता हूं मैं भी अकेला ही तुमसे सोनिया के खण्डहर में मिलूंगा। तुम्हें भी अपने उस्ताद की कसम है कि तुम भी अकेले आना। दो मर्दों की बातें अगर आमने-सामने अकेले में हों तो अच्छा होता है। अगर तुम अकेले आते हो तो मैं तुम्हें मर्द समझूंगा अन्यथा.. खैर, इसी वक्त निश्चित जगह पर पहुंचो।
- पिशाचनाथ।
खत पढ़ने के बाद शैतानसिंह कई सायत तक कुछ सोचता रहा, फिर बेनजूर की आवाज ने उसकी तन्द्रा भंग की- ''क्या हुआ शैतान... इसमें क्या लिखा है?''
कुछ नहीं।'' शैतानसिंह बोला- ''हकीकत में बिहारी पिशाच के कब्जे में है और जैसा कि हमें डर था, उसने हमें धमकी दी है। इस वक्त मैं चलता हूं, रात को किसी वक्त या सुबह को मैं आपसे मिलूंगा। हो सकता है कि आज रात... मैं अपने मकसद में कामयाब हो जाऊं।''
''तुम्हें किसी तरह की मदद की जरूरत तो नहीं?''
''नहीं।'' शैतानसिंह ने कहा- ''आज की रात तो मुझे जो कुछ करना है, अकेले ही करना है।'' इतना कहने के बाद शैतानसिंह ने बेगम से विदा ली और राजमहल से निकलकर अस्तबल में आया! उसने एक घोड़े पर जीन कसी और सवार होकर सोनिया के खण्डहर की तरफ रवाना हुआ। उस वक्त रात का दूसरा पहर खत्म होने जा रहा था, जब वह खण्डहर में पहुंचा। आज अर्द्ध-चंद्र आकाश में था और उसकी हल्की-हल्की चांदनी खण्डहर में छिटकी हुई थी। अभी वह घोड़े से उतर ही रहा था कि उसके आसपास ही कहीं से आवाज आई- ''अकेले आकर तुमने साबित कर दिया शैतानसिंह कि तुम हकीकत में मर्द हो।''
''लेकिन तुम भी तो अब मर्द की तरह सामने आओ।''
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