ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''दुनिया में एक वही तो आदमी है, जिसे एक ऐसा भेद मालूम है जिसके खुलने से मैं सबसे ज्यादा डरता हूं।'' पिशाचनाथ वोला-- ''मैं कुछ भी काम करता, लेकिन न जाने वह कहां से जिन्न की तरह हाजिर हो जाता और उसी भेद को खोलने के डर से मुझे धमकाता। अब वह तिलिस्म में फंस चुका है और जब तक तिलिस्म टूटेगा नहीं, वह वापस नहीं आ सकेगा और मैं निर्बाध होकर काम करूंगा। अपनी बातों मैं उलझाकर मैंने उसे धोखा दिया।''
''अच्छा, उसे तिलिस्म में बंद करने के बाद तुमने क्या किया?'' दलीपसिंह ने पूछा।
''इस बार मैं उस हाल से बाहर निकला, मैंने उसी बंदरों वाले कमरे के रास्ते का प्रयोग किया था।'' पिशाचनाथ ने कहना शुरू किया- ''उस बंदर वाले कमरे में बैठकर मैंने अपनी सूरत शैतानसिंह जैसी बनाई और खण्डहर के बाहर खड़े शैतानसिंह के घोड़े तक आया। वहां से घोड़े पर सवार होकर मैं सीधा बेगम बेनजूर के महल में पहुंचा और फौरन बेगम साहिबा से मिला। मुलाकाती कमरे में आते ही उन्होंने मुझसे पूछा- 'क्या बात है शैतानसिंह, कहां गए थे?'' - ''इस वक्त ज्यादा बात करने का समय नहीं है बेगम साहिबा।' मैंने कहा- 'उस खत के जरिए मुझे पिशाचनाथ ने सोनिया के खण्डहर में बुलाया था। उसने खत में लिखा था कि अगर मैं मर्द हूं तो बिना किसी को बताए अकेला ही उससे मिलने पहुंचूं। मैंने उस वक्त आपको भी नहीं बताया और उससे मिलने अकेला ही सोनिया के खण्डहर में पहुंचा... खैर...।' मैंने अचानक ऐसा अभिनय करके बात रोक दी, जैसे याद आ गया हो और फिर बात बदलकर बोला- 'अभी इन सब बातों को जाने दीजिए... वक्त बहुत कम है। विस्तार से मैं आपको फिर कभी यह सब बताऊंगा... इस वक्त मुख्तसर में तो केवल इतना ही जान लीजिए पिशाचनाथ से मेरा एक सौदा हो गया है... जिसके मुताबिक मुझे उसकी लड़की लौटानी होगी और उससे वादा करना होगा कि जिन्दगी में मैं कभी उसके टमाटर वाले भेद को नहीं खोलूंगा और इसके बदले में वह बिहारीसिंह को छोड़ देगा तथा रक्तकथा मुझे सौंपेगा।'
''क्या?' बेगम बेनजूर खुशी से उछल पड़ी- 'सच... क्या हकीकत में वह तुम्हें रक्तकथा देगा?'
''मैं आपसे पहले ही कहता था बेगम साहिबा कि उसे टमाटर वाले भेद की धौंस देकर चाहे दुनिया का कोई भी काम करवा लो।'' मैंने शैतानसिंह के ही ढंग से कहा- 'यह भेद उसकी सबसे वड़ी कमजोरी है। जैसे ही मैंने उससे इस बारे में बात की, उसकी सारी मर्दानगी धरी-की-धरी रह गई और वह मेरे पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगा... मुझसे माफी मांगने लगा... लेकिन मैंने उसकी एक न सुनी और कहा कि या तो मुझे रक्तकथा दे दो वर्ना.. बस इतनी धमकी सुनते ही वह सौदा करने के लिए तैयार हो गया। सौदा इसी समय तय होना है।'
''लेकिन शैतानसिंह आखिर वह कैसा भेद है, जिसके खुलने से पिशाचनाथ जैसा दबंग ऐयार इतना डरता है?' बेगम बेनजूर बोली- 'मैं पहले भी कई बार पूछ चुकी हूं... किन्तु तुम बताते ही नहीं। आज तो यह तुम हमें बता ही दो।'
''बेगम बेनजूर की इस बात से मैं समझ गया कि वास्तव में शैतानसिंह ने उसे भेद बताया नहीं हैं, इसीलिए मैं बोला- 'मैंने कहा ना बेगम साहिबा कि इस वक्त बातें करने का बिल्कुल समय नहीं है। पहले बिहारीसिंह और रक्तकथा को ले आएं, तब आराम से आपको सभी बातें बताऊंगा। इस वक्त जरा जल्दी से किसी नौकर के हाथ जमना को यहां बुलाइए।' मेरी यह बात सुनकर बेगम साहिबा ने हुक्म सुनाया। चोबदार जमना को लेने चला गया। इस बीच बेगम वेनजूर मुझसे भेद की बात उगलवाने की बहुत कोशिश करती रही, परन्तु उसे बेकार की बातों में उलझाए रखा। कुछ ही देर बाद चोबदार बेहोश जमना को लेकर हाजिर हुआ। इस तरह मैंने जमना को साथ लिया और बेगम बेनजूर से विदा लेकर महल से बाहर निकला। घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर रवाना हुआ। इस बात का मैंने खास ख्याल रखा था कि कहीं बेगम ने मेरे पीछे किसी सैनिक, नौकर अथवा ऐयार को तो नहीं लगा दिया है। मैं सबसे पहले जमना को लेकर शामासिंह के मकान पर पहुंचा। वहां अभी तक बिहरीसिंह शामासिंह, बागीसिंह, बलदेवसिंह और गिरधारीसिंह की मण्डली बैठी हुई आपस में बातें कर रही थी। देखते ही वे सब खड़े हो गए और बिहारीसिंह के अलावा सभी ने अपनी-अपनी म्यान से तलवारें खींच लीं और इससे पहले कि उनमें से कोई मुझ पर वार करता मैंने कहा- 'शांत होकर बैठ जाओ भाइयो... मैं पिशाचनाथ हूं।'
''मेरे मुंह से यह सुनते ही सब आश्चर्य से मेरी और देखने लगे। मैं आराम से बैठक में बैठा और मुंह धोकर अपना चेहरा साफ किया। उस वक्त सभी मेरी तरफ इस तरह देख रहे थे, मानो मैं कोई अजूबा हूं। जब मैं सब कामों से निपट गया तो शामासिंह ने पूछा- - ''कुछ बताओगे भी कि तुम क्या करके चले आ रहे हो या यूं ही हमें तरद्दुद में डाले रहोगे?'
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