ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 4 देवकांता संतति भाग 4वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
आठवाँ बयान
बेगम बेनजूर के महल में बजते हुए घण्टों ने रात का आखिरी पहर शुरू होने की खबर, रात को पहरा देते हुए सभी सिपाहियों और उनके साथ-साथ शामासिंह और उसके लड़के बलदेवसिंह को भी दे दी। वे दोनों महल की दीवार से लगे हुए एक पेड़ पर चढ़े बैठे थे। पाठकों को अच्छी तरह याद होगा कि पिछले ही बयान में पिशाचनाथ ने दलीपसिंह को बताया है कि उसने शामासिंह और बलदेवसिंह को यहां टोह लेने के लिए भेजा है। हम इस वक्त इन दो को यहां देखकर कह सकते हैं कि इस मामले में पिशाचनाथ ने दलीपसिंह किसी तरह का झूठ नहीं बोला है। यहीं हम पाठकों को यह भी याद दिला दें कि (पहले भाग के नौवें और दसवें दो बयानों) में बागीसिंह, बलदेवसिंह, गिरधारीसिंह और शामासिंह के बारे में लिख आए हैं। यहां उन बातों को दोहराना तो हमें बेसबब-सा महसूस होता है, मुनासिब यही है कि जिन पाठकों को याद नहीं रहा हो वे पहले भाग के ये दोनों बयान पढ़ जाएं। हां-हम यहां यह जरूर लिख देना चाहेंगे कि यह बयान उन्हीं दोनों बयानों से मतलब रखता है और इस बयान के जरिए हम उन दोनों बयानों, के भेद भी खोलना चाहते हैं।
वे दोनों बाप-बेटे अभी तक पेड़ पर ही बैठे हैं और किसी घटना के होने का इन्तजार कर रहे हैं। खाली बैठे रहने के सबब से उन्हें बीच-बीच में झपकी-सी भी आ जाती है। बलदेवसिंह काफी देर से अपने पिता से कहना चाहता है, लेकिन फिर कुछ सोचकर चुप ही रह जाता है। आखिर में जब उससे रहा नहीं गया तो. बोला ... ''पिताजी... पिशाच चाचा ने हमें भी यह क्या मक्खीमार काम सौंपा है... यहां भला रात को शैतानसिंह कें न लौटने से क्या हलचल होगी?''
''यही मैं भी सोच रहा था बेटे।'' शामासिंह ने कहा- ''इस वक्त सभी लोग आराम से सोए हुए हैं और हम बेकार में ही यहां बैठे हए अपनी नींद खराब कर रहे हैं। ऐयार लोग तो महीने-महीने नहीं लौटते, फिर भी कोई खबर नहीं लेता, सोचते हैं कि न जाने किसकी ऐयारी करने में उलझा हुआ हो? फिर भला शैतानसिंह के एक ही रात में न लौटने से क्या हलचल हो सकती है? हम बेकार ही यहां बैठे झक मार रहे हैं।'' - ''मेरा ख्याल तो ये है पिताजी, कि यहां से चला जाए।'' अपने पिता के विचार सुनने से तो उसका हौसला और बढ़ गया- ''आराम से जाकर ठाठ की नींद लेंगे।''
इन बातों से साफ जाहिर होता है कि काफी वक्त से यहां बैठे-बैठे वे दोनों ही उकता गए हैं और इस से छुटकारा पाने की ही कोई तरकीब वे लगा रहे हैं। मगर, शामासिंह बोला- ''लेकिन जब पिशाच को यह पता लगेगा तो वह बहुत गुस्सा होगा।''
''मेरी समझ में यह नहीं आता पिताजी कि आप पिशाच चाचा से इतना डरते क्यों हैं?'' बलदेव ने कहा- ''आपका और उनका बराबरी का ओहदा है। वे भी राजा दलीपसिंह के ऐयार हैं और आप भी। फिर आपका उनसे दबने का क्या सबब है?''
''मैं उससे नहीं डरता बेटे, बल्कि अपने धर्म से डरता हूं।'' शामासिंह बोले- ''मेरा धर्म है कि मेरा मालिक मुझे जो हुक्म दे, अपना सबकुछ भूलकर मैं उसके हुक्म की तामील करूं और यहां से हमारा इस तरह चले जाना मालिक के काम का नुकसान करना है... जो मैं नहीं चाहता।''
''यह तो बिल्कुल ठीक है पिताजी कि जिस मालिक का हम नमक खाते हैं... उसके लिए हमें अपनी जान दे देनी चाहिए।'' बलदेवसिंह क्योंकि यहां बैठा-बैठा बुरी तरह ऊब चुका था, इसीलिए बोला- ''लेकिन आपको यहां आने का हुक्म मालिक ने तो नहीं दिया। ये हुक्म तो पिशाच चाचा ने ही दिया है।
''लेकिन पिशाच को ही तो वे अपने ऐयारों में सबसे बड़ा ऐयार मानते हैं।'' शामासिंह ने कहा- ''अगर उन्हें मालूम हो गया कि हमने पिशाचनाथ की हुक्मउदूली की है तो वे नाराज होंगे और यह भी मुमकिन है कि मुझे किसी तरह की सजा भी सुना दें।''
''यही तो सोचने की बात है पिताजी।'' बलदेवसिंह ने कहा- ''राजा दलीपसिंह पिशाच को ही सबसे बड़ा ऐयार क्यों समझते हैं? आपको क्यों नहीं समझते? क्या वह ऐयारी में आपसे ज्यादा होशियार हैं? क्या आपकी उम्र उनसे कम है? क्या आपने दलीपसिंह के बहुत से मनोरथ सफल नहीं किए हैं? बल्कि मैं तो ये कहता हूं कि आपने पिशाच चाचा से ज्यादा ही उनके काम किए होंगे-फिर वे पिशाच को बड़ा क्यों मानते हैं... इसका क्या सबब है?''
यह तो हमारी भी समझ में नहीं आता, बेटे। शामासिंह अपने लड़के की बातों में उलझ गए थे।
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