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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय १९-२०

सती और शिव के द्वारा अग्नि की परिक्रमा, श्रीहरि द्वारा शिवतत्त्व का वर्णन, शिव का ब्रह्माजी को दिये हुए वर के अनुसार वेदी पर सदा के लिये अवस्थान तथा शिव और सती का विदा हो कैलास पर जाना

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! कन्यादान करके दक्ष ने भगवान् शंकर को नाना प्रकार की वस्तुएँ दहेज में दीं। यह सब करके वे बड़े प्रसन्न हुए। फिर उन्होंने ब्राह्मणों को भी नाना प्रकार के धन बाँटे। तत्पश्चात् लक्ष्मी-सहित भगवान् विष्णु शम्भु के पास आ हाथ जोड़कर खड़े हुए और यों बोले- 'देवदेव महादेव! दयासागर! प्रभो! तात! आप सम्पूर्ण जगत् के पिता हैं और सती देवी सबकी माता हैं। आप दोनों सत्पुरुषों के कल्याण तथा दुष्टों के दमन के लिये सदा लीलापूर्वक अवतार ग्रहण करते हैं – यह सनातन श्रुति का कथन है। आप चिकने नील अंजन के समान शोभावाली सती के साथ जिस प्रकार शोभा पा रहे हैं मैं उससे उलटे लक्ष्मी के साथ शोभा पा रहा हूँ - अर्थात् सती नीलवर्णा तथा आप गौरवर्ण हैं उससे उलटे मैं नीलवर्ण तथा लक्ष्मी गौरवर्णा हैं। '

नारद! मैं देवी सती के पास आकर गृह्यसूत्रोक्त विधि से विस्तारपूर्वक सारा अग्नि-कार्य कराने लगा। मुझ आचार्य तथा ब्राह्मणों की आज्ञा से शिवा और शिव ने बड़े हर्ष के साथ विधिपूर्वक अग्नि की परिक्रमा की। उस समय वहाँ बड़ा अद्भुत उत्सव मनाया गया। गाजे, बाजे और नृत्य के साथ होनेवाला वह उत्सव सबको बड़ा सुखद जान पड़ा।

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