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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिताहनुमानप्रसाद पोद्दार
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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...
ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! अपने पार्षदों की यह बात सुनकर भगवान् शिव ने वहाँ की सारी घटना जानने के लिये शीघ्र ही तुम्हारा स्मरण किया। देवर्षे! तुम दिव्य दृष्टि से सम्पन्न हो। अत: भगवान् के स्मरण करने पर तुम तुरंत वहाँ आ पहुँचे और शंकरजी को भक्तिपूर्वक प्रणाम करके खड़े हो गये। स्वामी शिव ने तुम्हारी प्रशंसा करके तुमसे दक्षयज्ञ में गयी हुई सती का समाचार तथा दूसरी घटनाओं को पूछा। तात! शण्भु के पूछने पर शिव में मन लगाये रखनेवाले तुमने शीघ्र ही वह सारा वृत्तान्त कह सुनाया, जो दक्षयज्ञ में घटित हुआ था। मुने! तुम्हारे मुख से निकली हुई बात सुनकर उस समय महान् रौद्र पराक्रम से सम्पन्न सर्वेश्वर रुद्र ने तुरंत ही बड़ा भारी क्रोध प्रकट किया। लोकसंहारकारी रुद्र ने अपने सिर से एक जटा उखाड़ी और उसे रोषपूर्वक उस पर्वत के ऊपर दे मारा। मुने! भगवान् शंकर के पटकने से उस जटा के दो टुकड़े हो गये और महाप्रलय के समान भयंकर शब्द प्रकट हुआ। देवर्षे! उस जटा के पूर्वभाग से महाभयंकर महाबली वीरभद्र प्रकट हुए, जो समस्त शिवगणों के अगुआ हैं। वे भूमण्डल को सब ओर से व्याप्त करके उससे भी दस अंगुल अधिक होकर खड़े हुए। वे देखने में प्रलयाग्नि के समान जान पड़ते थे। उनका शरीर बहुत ऊँचा था। वे एक हजार भुजाओं से युक्त थे। उन सर्वसमर्थ महारुद्र के क्रोधपूर्वक प्रकट हुए निःश्वाससे सौ प्रकारके ज्वर और तेरह प्रकारके संनिपात रोग पैदा हो गये। तात! उस जटा के दूसरे भाग से महाकाली उत्पन्न हुईं, जो बड़ी भयंकर दिखायी देती थीं। वे करोड़ों भूतों से घिरी हुई थीं। जो ज्वर पैदा हुए, वे सब-के-सब शरीरधारी, कूर और समस्त लोकों के लिये भयंकर थे। वे अपने तेज से प्रज्वलित हो सब ओर दाह उत्पन्न करते हुए-से प्रतीत थे। वीरभद्र बातचीत करने में बड़े कुशल थे। उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर परमेश्वर शिव को प्रणाम करके कहा।
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