लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

Like this Hindi book 0

भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय ४१ - ४२ 

देवताओं द्वारा भगवान् शिव की स्तुति, भगवान् शिव का देवता आदि के अंगों के ठीक होने और दक्ष के जीवित होने का वरदान देना, श्रीहरि आदि के साथ यज्ञमण्डप में पधारकर शिव का दक्ष को जीवित करना तथा दक्ष और विष्णु आदि के द्वारा उनकी स्तुति

देवताओं ने भगवान् शिवजी की अत्यन्त विनय के साथ स्तुति करते हुए अन्त में कहा- आप पर (उत्कृष्ट), परमेश्वर, परात्पर तथा परात्परतर हैं। आप सर्वव्यापी विश्वमूर्ति महेश्वर को नमस्कार है। आप विष्णुकलत्र, विष्णुक्षेत्र, भानु, भैरव, शरणागतवत्सल, त्र्यम्बक तथा विहरणशील हैं। आप मृत्युंजय हैं। शोक भी आपका ही रूप है आप त्रिगुण एवं गुणात्मा हैं। चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि आपके नेत्र हैं। आप सबके कारण तथा धर्ममर्यादास्वरूप हैं। आपको नमस्कार है। आपने अपने ही तेज से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है। आप निर्विकार प्रकाशपूर्ण, चिदानन्दस्वरूप, परब्रह्म परमात्मा हैं। महेश्वर! ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र और चन्द्र आदि समस्त देवता तथा मुनि आप से ही उत्पन्न हुए हैं। चूँकि आप अपने शरीर को आठ भागों में विभक्त करके समस्त सँसार का पोषण करते हैं इसलिये अष्टमूर्ति कहलाते हैं। आप ही सबके आदिकारण करुणामय ईश्वर हैं। आपके भय से यह वायु चलती है। आपके भय से अग्नि जलाने का काम करती है आपके भय से सूर्य तपता है और आपके ही भय से मृत्यु सब ओर दौड़ती फिरती है। दयासिन्धो! महेशान! परमेश्वर! प्रसन्न होइये। हम नष्ट और अचेत हो रहे हैं। अत: सदा ही हमारी रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये। नाथ! करुणानिधे! शम्भो! आपने अबतक नाना प्रकार की आपत्तियों से जिस तरह हमें सदा सुरक्षित रखा है उसी तरह आज भी आप हमारी रक्षा कीजिये। नाथ! दुर्गेश! आप शीघ्र कृपा करके इस अपूर्ण यज्ञ का और प्रजापति दक्ष का भी उद्धार कीजिये। भग को अपनी आँखें मिल जायँ, यजमान दक्ष जीवित हो जायँ, पूषा के दाँत जम जायँ और भृगु की दाढ़ी-मूँछ पहले-जैसी हो जाय। शंकर! आयुधों और पत्थरों की वर्षा से जिनके अंग भंग हो गये हैं उन देवता आदिपर आप सर्वथा अनुग्रह करें, जिससे उन्हें पूर्णत: आरोग्य लाभ हो। नाथ! यज्ञकर्म पूर्ण होने पर जो कुछ शेष रहे वह सब आपका पूरा-पूरा भाग हो (उसमें और कोई हस्तक्षेप न करे)। रुद्रदेव! आपके भाग से ही यज्ञ पूर्ण हो, अन्यथा नहीं।

ऐसा कहकर मुझ ब्रह्मा के साथ सभी देवता अपराध क्षमा कराने के लिये उद्यत हो हाथ जोड़ भूमिपर दण्ड के समान पड़ गये।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book