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ई-पुस्तकें >> शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

 अध्याय १२ 

हिमवान् का पार्वती को शिव की सेवा में रखने के लिये उनसे आज्ञा माँगना और शिव का कारण बताते इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर देना

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! तदनन्तर शैलराज हिमालय उत्तम फल-फूल लेकर अपनी पुत्री के साथ हर्षपूर्वक भगवान् हर के समीप गये। वहाँ जाकर उन्होंने ध्यान-परायण त्रिलोकीनाथ शिव को प्रणाम किया और अपनी अद्भुत कन्या काली को हृदय से उनकी सेवा में अर्पित कर दिया। फल-फूल आदि सारी सामग्री उनके सामने रखकर पुत्री को आगे करके शैलराज ने शम्भु से कहा- 'भगवन्! मेरी पुत्री आप भगवान् चन्द्रशेखर की सेवा करने के लिये उत्सुक है। अत: आपके आराधन की इच्छा से मैं इसको साथ लाया हूँ। यह अपनी दो सखियों के साथ सदा आप शंकर की ही सेवा में रहे। नाथ! यदि आपका मुझपर अनुग्रह है तो इस कन्या को सेवा के लिये आज्ञा दीजिये।' तब भगवान् शंकर ने उस परम मनोहर कामरूपिणी कन्या को देखकर आँखें मूँद लीं और अपने त्रिगुणातीत, अविनाशी, परमतत्त्वमय उत्तम रूप का ध्यान आरम्भ किया। उस समय सर्वेश्वर एवं सर्वव्यापी जटाजूटधारी वेदान्तवेद्य चन्द्रकलाविभूषण शम्भु उत्तम आसन पर बैठकर नेत्र बंद किये तप (ध्यान) में ही लग गये। यह देख हिमाचल ने मस्तक झुकाकर पुन: उनके चरणों में प्रणाम किया। यद्यपि उनके हृदय में दीनता नहीं थी, तो भी वे उस समय इस संशय में पड़ गये कि न जाने भगवान् मेरी प्रार्थना स्वीकार करेगे या नहीं। वक्ताओं में श्रेष्ठ गिरिराज हिमवान् ने जगत् के एकमात्र बन्धु भगवान् शिव से इस प्रकार कहा।

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