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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

 अध्याय १७ 

इन्द्र द्वारा काम का स्मरण, उसके साथ उनकी बातचीत तथा उनके कहने से काम का शिवको मोहने के लिये प्रस्थान

ब्रह्माजी कहते हैं- नारद! देवताओं के चले जाने पर दुरात्मा तारक दैत्य से पीड़ित हुए इन्द्र ने कामदेव का स्मरण किया। कामदेव तत्काल वहाँ आ पहुँचा। इन्द्र ने मित्रता का धर्म बतलाते हुए काम से कहा- 'मित्र! कालवशात् मुझपर असाध्य दुःख आ पड़ा है। उसे तुम्हारे बिना कोई भी दूर नहीं कर सकता। दाता की परीक्षा दुर्भिक्ष में, शूरवीर की परीक्षा रणभूमि में, मित्र की परीक्षा आपत्तिकाल में तथा स्त्रियों के कुल की परीक्षा पति के असमर्थ हो जानेपर होती है। तात! संकट पड़ने पर विनय की परीक्षा होती है और परोक्ष में सत्य एवं उत्तम स्नेह की, अन्यथा नहीं। यह मैंने सच्ची बात कही है।'

दातुः परीक्षा दुर्भिक्षे रणे शूरस्य जायते।
आपत्काले तु मित्रस्याशक्तौ स्त्रीणां कुलस्य हि।।
विनते: संकटे प्राप्तेऽवितथस्य परोक्षतः।
सुस्नेहस्य तथा तात नान्यथा सत्यमीरितम्।।

(शि० पु० रु० सं० पा० ख० १७। १२-१३ )

मित्रवर! इस समय मुझपर जो विपत्ति आयी है, उसका निवारण दूसरे किसी से नहीं हो सकता। अत: आज तुम्हारी परीक्षा हो जायगी। यह कार्य केवल मेरा ही है और मुझे ही सुख देनेवाला है ऐसी बात नहीं। अपितु यह समस्त देवता आदि का कार्य है इसमें संशय नहीं है।'

इन्द्र की यह बात सुनकर कामदेव मुसकराया और प्रेमपूर्ण गम्भीर बाणी में बोला।

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