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शिव पुराण भाग-2 - रुद्र संहिता

हनुमानप्रसाद पोद्दार

प्रकाशक : गीताप्रेस गोरखपुर प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :812
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2079
आईएसबीएन :81-293-0099-0

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भगवान शिव की महिमा का वर्णन...

 

अध्याय २२ 

श्रीशिव की आराधना के लिये पार्वतीजी की दुष्कर तपस्या

ब्रह्माजी कहते हैं- देवर्षे! तुम्हारे चले जाने पर प्रफुल्लचित्त हुई पार्वती ने महादेवजी को तपस्या से ही साध्य माना और तपस्या के लिये ही मन में निश्चय किया। तब उन्होंने अपनी सखी जया और विजया के द्वारा पिता हिमाचल और माता मेना से आज्ञा माँगी। पिता ने तो स्वीकार कर लिया; परंतु माता मेना ने स्नेहवश अनेक प्रकार से समझाया और घर से दूर बन में जाकर तप करने से पुत्री को रोका। मेना ने तपस्या के लिये बन में जानेसे रोकते हुए 'उ', 'मा' ( बाहर न जाओ ) ऐसा कहा; इसलिये उस समय शिवा का नाम उमा हो गया। मुने! शैलराज की प्यारी पत्नी मेना ने रोकने से शिवा को दुःखी हुई जान अपना विचार बदल दिया और पार्वती को तपस्या के लिये जाने की आज्ञा दे दी। मुनिश्रेष्ठ! माता की वह आज्ञा पाकर उत्तम व्रत का पालन करनेवाली पार्वती ने भगवान् शंकर का स्मरण करके अपने मन में बड़े सुख का अनुभव किया। माता-पिता को प्रसन्नता पूर्वक प्रणाम करके शिव के स्मरणपूर्वक दोनों सखियों के साथ वे तपस्या करने के लिये चली गयीं। अनेक प्रकार के प्रिय वस्त्रों का परित्याग करके पार्वती ने कटि प्रदेश में सुन्दर मूँज की मेखला बाँध शीघ्र ही वल्कल धारण कर लिये। हार का परिहार करके उत्तम मृगचर्म को हृदय से लगाया। तत्पश्चात् वे तपस्या के लिये गंगावतरण (गंगोत्तरी) तीर्थ की ओर चलीं।

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